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७४ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य
के स्तर पर जाने, फिर भी वह इन निम्नस्तरीय वृत्तियों से नहीं छूट सकता । ऊर्ध्वयात्रा प्रारम्भ होते ही वृत्तियों में परिवर्तन आने लग जाता है। साधना का पहला चरण
ऊर्ध्वयात्रा का प्रारम्भ साधना का पहला चरण है। इसी का नाम है तपस्या। ऊर्जा को एकत्रित कर ऊर्ध्वगामी बनाना ही तपस्या है। ऊर्जा के बिना कुछ हो नहीं सकता। विस्फोट किए बिना कुछ भी निष्पन्न नहीं होता। जब तक विस्फोट की शक्ति नहीं होती तब तक कोई भी क्रांति घटित नहीं होती। क्रांतिकारी कार्य के संपादन के लिए एक विस्फोट की जरूरत होती है। विस्फोट के लिए ऊर्जा के भंडार की आवश्यकता होती है। ऊर्जा का संचय करें। ऊर्जा का व्यय कम करें। ऊर्जा का विस्फोट करें । ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी करें।
तपस्या का पहला प्रकार है-अनशन, भूखे रहना। भूखे रहने से ऊर्जा अधिक उत्पन्न होती है। भोजन करने से भी ऊर्जा उत्पत्र होती है। वह ऊर्जा केवल हमारे शरीर-यंत्र का संचालन मात्र कर सकती है। वह ऊर्जा कोशिकाओं को सक्रिय बना देती है। किन्तु चेतना के क्षेत्र में विस्फोट करने के लिए वह ऊर्जा पर्याप्त नहीं है। उससे विस्फोट संपन्न नहीं होता। विस्फोट के लिए सूक्ष्म ऊर्जा अपेक्षित होती है। वह तपस्या और भावना के द्वारा उत्पन्न होती है। वह सूक्ष्म प्रयोगों के द्वारा उत्पन्न होती है। वह अन्न खाने से पैदा नहीं होती। तपस्या में भी यदि पानी नहीं लिया जाता है। तो अधिक ऊर्जा पैदा होती है। गर्मी को सहने से और अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। गप्ति की साधना
ऊर्जा को उत्पन्न करने, ऊपर ले जाने, उसका व्यय कम करने का उपाय हैप्रवृत्ति कम करो, स्थिर अधिक रहो। जितनी प्रवृत्ति होती है, ऊर्जा का व्यय भी उतना ही होता है । यह केवल आध्यात्मिक जगत् की ही बात नहीं है। शरीरशास्त्री भी इसी तथ्य को स्वीकार करते हैं। प्रवृत्ति अधिक, ऊर्जा का व्यय अधिक । प्रवृत्ति कम, ऊर्जा का व्यय कम । चिकित्सक विश्राम करने का सुझाव देते हैं, उसके पीछे यही दृष्टिकोण है। विश्राम करने से शक्ति का व्यय कम होता है। ऊर्जा एकत्रित होती है।
कायिक प्रवृत्ति करते हैं तो.ऊर्जा का व्यय होता है, इसलिए कहा गया हैकायगुप्ति करो।
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