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________________ ६८ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य ज्ञाता-द्रष्टा भाव ___ आत्मयुद्ध की तीसरा उपाय है-ज्ञाता-द्रष्टाभाव । जैसे-जैसे ज्ञाता-द्रष्टाभाव का विकास होगा, आत्मयुद्ध की लड़ाई अधिक तेज बन जाएगी । मैं भोक्ता नहीं हूं, मैं द्रष्टा हूं। इस चेतना का जैसे-जैसे विकास होगा, आत्मयुद्ध अधिक प्रखर बन जाएगा, विजय की संभावना प्रबल बन जाएगी। नेतिवाद : चैतन्य की स्मृति आत्म युद्ध का चौथा उपाय है--सतत स्मृति, सतत जागरूकता। बौद्ध साहित्य का महत्त्वपूर्ण शब्द है-स्मृति प्रस्थान । व्यक्ति को निरन्तर अपनी स्मृति रहे, वह अपने प्रति निरन्तर जागरूक रहे । वह सोचे--मैं इन्द्रियां नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं। मैं कषाय नहीं हूं । आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार में इस विषय पर बहुत प्रकाश डाला है । समयसार में नेतिवाद का एक पूरा प्रकरण है-मैं क्रोध नहीं हूं, मैं मान नहीं हैं, मैं माया नहीं हूं, मैं लोभ नहीं हैं, मैं यह नहीं हैं, मैं वह नहीं हूं। नेति-नेति करते चले जाएं-मैं राग नहीं हूं, मैं द्वेष नहीं हूं, मैं द्वेष नहीं हूं, मैं ईर्ष्या नहीं हूं, मैं घृणा नहीं हूं । नेति-नेति करते-करते शेष रहेगा केवल चैतन्य । मैं चैतन्य हूं. केवल चैतन्य हूं और कुछ नहीं। यह सतत स्मृति आत्मयुद्ध का एक प्रकार है। उपनिषद् में नेतिवाद का विशद वर्णन है। आचारांग में भी नेतिवाद का पूरा प्रकरण है। इस नेतिवाद की सतत स्मृति अपने चैतन्य की स्मृति है। प्रतिक्रमण : रणनीति का एक अंग आत्मयुद्ध का पांचवा उपाय है-प्रतिक्रमण । मुड़कर देखना भी जरूरी है। प्रतिक्रमण में व्यक्ति सोचता है-मैं क्या था, क्या हूं और मुझे क्या होना है ? प्रतिक्रमण का अर्थ है—जिस स्थिति को स्वीकारा, आत्मयुद्ध को स्वीकारा, उस भूमिका पर पहुंचकर समग्र रूप से अपना विश्लेषण करना । प्रतिक्रमण नहीं होता है तो कभी-कभी शिथिलता आ जाती है, कमजोरी आ जाती है, रसद की कमी भी हो जाती है। जब दूसरा महायुद्ध चल रहा था तब बार-बार रेडियो में एक स्वर सुनाई देता—आज ब्रिटेन की सेना बड़ी बहादुरी के साथ पीछे हटी । पीछे भी हटी किन्तु बहादुरी के साथ । यह स्वर बहुत विचित्र लगता। पूछा गया--भाई ! पीछे हटने से कौन-सी बहादुरी है? इसका स्पष्टीकरण दिया जाता-यह भी रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । आत्मयुद्ध की लड़ाई में कभी-कभी बहादुरी से पीछे हटना भी जरूरी है और इसी का नाम प्रतिक्रमण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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