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लड़ स्वय के साथ | ६९
आत्मयुद्ध : चेतना विकास का उपक्रम
महावीर का आत्मयुद्ध का यह संदेश मानवीय चिन्तन या मानवीय चेतना के वेकास का सबसे बड़ा उपक्रम है। निठल्ला बैठना, कायर होकर बैठना महावीर जैसे पराक्रमी व्यक्ति को पसंद नहीं था। पराक्रमी व्यक्ति कभी निकम्मा बैठना
सन्द नहीं करता, खाली होकर बैठना पसंद नहीं करता। वह हमेशा कुछ न कुछ करता रहता है। यह आत्मयुद्ध पराक्रमी व्यक्ति ही कर सकता है। इसमें जो व्यक्ति आता है, वह स्वयं सुखी बनता है और दूसरो को भी सुख बांटता है।
आत्मना युद्धस्व' यह अध्यात्म का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है । इसकी गहराई में जाना, इसको जीना अपने आपको विजयी बनाना है ।इस विजय में इन्द्रिय-विजय और पनो विजय—दोनों सहज उपलब्ध हो जाती हैं।
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