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________________ लड़ें स्वयं के साथ एक जिज्ञासा लेकर शिष्य आचार्य की सनिधि में प्रस्तुत हुआ । विनम्र भाव से वंदना कर उसने कहा- गुरुदेव ! मैंने सुना है, पढ़ा है – भगवान् महावीर इस संसार में अहिंसा के सबसे बड़े प्रवर्तक हुए हैं। उन्होंने अहिंसा को जितना मूल्य दिया, उतना महत्त्व किसी को नहीं दिया। मैंने यह भी सुना है— महावीर युद्ध की भाषा में बोले, लड़ाई की भाषा में बोले, जय और पराजय की भाषा में बोले । मेरे मानस में यह प्रश्न घूम रहा है - महावीर युद्ध की भाषा में क्यों बोले ? एक ओर अहिंसा का सूक्ष्म विवेचन, दूसरी ओर युद्ध की भाषा का प्रयोग । इन दोनों में संगति कहां है ? मनोवैज्ञानिक बतलाते हैं - युद्ध एक मौलिक मनोवृत्ति है । मनोविज्ञान में चौदह मनोवृत्तियां मानी गई है। उनमें एक है युद्ध । क्या यह माना जाए - महावीर में भी यह मौलिक मनोवृत्ति विद्यमान थी ? गुरु ने कहा- वत्स ! महावीर अहिंसा के प्रवक्ता थे, इसमें कोई सन्देह नहीं है। महावीर युद्ध की भाषा में बोले, यह भी सचाई है । महावीर क्षत्रिय राजकुमार थे । युद्धं क्षत्रिय का प्रिय विषय होता है । । कायरता है सबसे बड़ा पाप वस्तुतः लड़ना कोई बुरी बात नहीं है। बुरा है कायर होना । महावीर ने कायरता को सबसे बड़ा पाप बतलाया । बहुत लोग आक्षेप करते हैं— अहिंसा कायरता सिखलाती है, जैन-धर्म ने कायरता सिखलाई । यह आरोपण भी कर दिया जाता है - हिन्दुस्तान परतन्त्र बना, उसमें जैन धर्म और बौद्ध धर्म का बहुत सहारा रहा है । इन धर्मों ने अहिंसा पर अधिक बल दिया इसलिए हिन्दुस्तान परतंत्र बन गया । इस आरोपण में कोई सचाई नहीं है । ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह बिलकुल मिथ्या बात है । अहिंसा के कारण कोई देश परतंत्र नहीं बनता । कायरता के कारण, आपसी फूट और कलह के कारण ही कोई देश परतंत्र बनता है। जहां परस्पर वैमनस्य होता है, कलह और संघर्ष होता है, वहां परतंत्र होने की सम्भावना बनी रहती है। जहां अहिंसा का विकास होता है, वहां फूट, बेईमानी और कलह को पनपने का अवकाश नहीं मिलता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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