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काम परिष्कार के सूत्र / ५९ भयंकरता से घबरा गए हैं। इसकी रोकथाम के लिए सघन प्रयत्न किए जा रहे हैं । इस बीमारी का एकमात्र कारण है कामवृत्ति की निरंकुशता । इस संदर्भ में, जागतिक और सामाजिक समस्या के संदर्भ में, हम विचार करें तो कामवृत्ति पर नियन्त्रण करना और उसके साथ संघर्ष करना अत्यन्त आवश्यक है ।
उपशमन और दमन
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आज की शिक्षा या वातावरण ने युवक के मन में एक भ्रांति पैदा कर दी कि इच्छा का दमन नहीं करना चाहिए, काम-वासना का दमन नहीं करना चाहिए। इस भ्रान्ति ने मुक्त यौनाचार को प्रश्रय दिया और एक समस्या पैदा कर दी। दमन का अर्थ युवक ने समझा नहीं । 'दमन नहीं करना' – इसका यह तात्पर्य नहीं है कि डंडा नहीं मारना । कभी-कभी डंडा मारना भी आवश्यक हो जाता है। भारतीय चिन्तन में दमन का बहुत व्यापक अर्थ है । लज्जा, एकाग्रता, धृति, क्षमा आदि आदि सदाचार की बीसों वृत्तियों का नाम है 'दमन' । श्वासप्रेक्षा का प्रयोग करना, आनन्द- केन्द्र और दर्शनकेन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करना, अन्तर्यात्रा का प्रयोग करना - ये सारे दमन हैं । इनको बुरा कैसे मानें ? दमन बुरा ही नहीं होता। हम वृत्तियों का उपशमन करें, यह दमन नहीं है । उपशमन और दमन की प्रक्रिया अत्यन्त वैज्ञानिक है । 'दमित वासनाएं समस्याएं पैदा करती हैं' - फ्रायड की इस बात को ठीक समझा नहीं गया । दमन आवश्यक है और दमित वासनाएं खतरनाक भी होती हैं- ये दोनों विरोधी बातें हैं । जब हम वृत्तियों को शांत करने के लिए उपाय का आलम्बन लेते हैं तब वह दमन नहीं होता । वहां वृत्ति का शमन होता है। वह दमन की प्रक्रिया नहीं है, उपाय है । वृत्ति जागी और उसे बलात् रोकना दमन हो सकता है, पर उस वृत्ति को उपाय के द्वारा शान्त करना दमन नहीं है, शमन है। शमन बुरा नहीं होता । यह आज की अनिवार्य आवश्यकता है। दूध में उफान आया, पानी का छींटा दिया और उसका उफान शान्त हो गया । यह उफान को शान्त करने का उपाय है । वृत्ति जागी । उपाय किया । ' दीर्घश्वास अन्तर्यात्रा या अनुप्रेक्षा का आलंबन लिया और वृत्ति के उस उफान को शान्त कर दिया । यह शमन की प्रक्रिया है। इसका आलम्बन लेकर हम सुखी और आनन्दमय जीवन जी सकते हैं ।!
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