________________
काम परिष्कार के सूत्र । ५७ हस्तक्षेप नहीं करता। जो अनैच्छिक प्रवृत्तियां हैं, उनका नियंत्रण मेरुदंड से होता है। मेरुदंड को हम अन्तर्यात्रा के द्वारा साध लेते हैं। इसका तात्पर्य हुआ कि हम स्वचालित वृत्तियों पर भी नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं ।एक बार के नियंत्रण से काम नहीं चलता। वृत्तियां बार-बार उठती हैं तो उन पर बार-बार चोट करनी पड़ती हैं। तभी वे नियंत्रित हो पाती हैं। वृत्तियां बहुत जिद्दी होती हैं। बार-बार उठती रहती हैं, क्योंकि उनका उपादान भीतर पड़ा है, भीतर जमा है। किंतु उपाय के द्वारा उनकी इस जिद्दी प्रकृति को मिटा सकते हैं।
एक महिला कुत्ते को प्रशिक्षित कर रही थी। पति ने देखा। उसने पत्ली से कहा—'व्यर्थ का श्रम क्यों कर रही हो? कुत्ता इतना जिद्दी है कि वह तुम्हारी एक बात भी नहीं मानेगा। पत्नी बोली-भूल गए। शादी हुई तब तुम कितने जिद्दी थे? उत्पत्ति स्रोत
किसी को भी उपाय के द्वारा प्रशिक्षित किया जा सकता है। कामवृत्ति क्यों पैदा होती है, इस पर विचार करना जरूरी है । मनोविज्ञान ने भी उसकी उत्पत्ति का आन्तरिक कारण माना है । दर्शन की भाषा में वह आन्तरिक कारण है कर्मशरीर, कर्म-संस्कार । प्रत्येक प्राणी के साथ कर्म-संस्कारों का अटूट खजाना है । वृत्तियों का वही उत्पत्ति-स्रोत है, उत्स है। काम की वृत्ति भी वहीं से निकलती है । वह मोहकर्म से पैदा होती है। यदि हम वृत्ति को शांत और अनुशासित रखना चाहें तो हमें मोहकर्म की निर्जरा करनी होगी। संवर और निर्जरा
निर्जरा महत्त्वपूर्ण शब्द है । इस वृत्ति के लिए दो शब्दों पर ध्यान देना जरूरी है। वे दो शब्द हैं—संवर और निर्जरा । ये युद्ध के शक्तिशाली शस्त्र हैं। शत्रु को आगे न बढ़ने देना, शत्रु को अपनी सीमा में न घुसने देना, यह है संवर और जो शत्रु घुस चुके हैं उनको समाप्त कर देना, नष्ट कर देना, यह है निर्जरा । यह है क्षयीकरण । नई कामना को पैदा न होने देना संवर है और कामनाओं का जो ढेर पड़ा है, जो संस्कारों का चयं है, उसको नष्ट करना, विलय करना, यह है निर्जरा।।
अनेक ध्यान-पद्धतियां हैं-उनमें साक्षी या द्रष्टा बने रहने की बात सिखाई जाती है। यह अच्छी बात है । द्रष्टाभाव या साक्षीभाव से संवर हो सकता है, नई कामना उत्पत्र नहीं हो सकती, परन्तु जो पुराना संग्रह है कामनाओं और वृत्तियों का, उसका विलयन कैसे होगा? द्रष्टाभाव से निर्जरा नहीं हो सकती, संवर हो सकता है । युद्ध में विजय पाने के लिए केवल संवर पर्याप्त नहीं है । निर्जरा के बिना, संचित वृत्तियों के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org