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५६ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य
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योग पद्धति में जिसे अनुलोम-विलोम प्राणायाम कहा जाता है, वही प्रेक्षाध्यान पद्धति में समवृत्ति श्वास प्रेक्षा के नाम से अभिहित है ! एक नथुने से श्वास लेना और दूसरे नथुने से बाहर निकालना, यही है समवृत्ति श्वास प्रेक्षा । हम बाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब हमारा दायां मस्तिष्क प्रभावित होता है और जब हम दाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब बायां मस्तिष्क प्रभावित होता है। मस्तिष्क का बायां पटल भाषा, विज्ञान, गणित आदि के लिए उत्तरदायी है और दायां पटल आध्यात्मिक शक्तियों के लिए उत्तरदायी | जब हम बाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब दायां मस्तिष्क-पटल सक्रिय होता है, सृजनात्मक शक्तियों का केन्द्र सक्रिय हो जाता है। जब हम दाएं नथुने से श्वास लेते हैं तब बौद्धिक क्षमताओं का केन्द्र सक्रिय हो जाता है। एक विद्यार्थी मंदबुद्धि है । वह गणित, भाषा आदि विषयों में कमजोर है । यदि वह विद्यार्थी दाएं नथुने से श्वास लेने का अभ्यास करे तो उसकी क्षमताएं बढ़ने लग जाएंगी। जिस विद्यार्थी में भावात्मक क्षमताएं कम हैं, अन्तर्दृष्टि और सूझबूझ कम है, वह यदि बाएं नथुने से श्वास लेने का अभ्यास करे तो उसकी वे क्षमताएं वृद्धिंगत हो सकती है
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समवृत्ति श्वास प्रेक्षा पूर्ण व्यक्तित्व के विकास का सूत्र है। इससे दोनों प्रकार की क्षमताएं विकसित होती हैं, क्योंकि इसमें बारी-बारी से दोनों नथुनों से श्वास लिया है 1
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आनंद केन्द्र पर ध्यान
कामवृत्ति पर नियन्त्रण पाने का एक बिन्दु है, स्थान है मेरुदण्ड में, जिसे 'लंबर रीजन' कहा जाता है | तेरह चैतन्य - केन्द्रों में एक है आनन्द - केन्द्र | इसका स्थान है फुप्फुस के नीचे और हृदय के पास । आनन्दकेन्द्र पर ध्यान करने से कामवृत्ति नियंत्रित होती है, उत्तेजना पर नियंत्रण होता है। एक बात स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि कामवृत्ति की उत्तेजना जिन अवयवों में होती है वे नियंत्रण के अवयव नहीं हैं । वे केवल अभिव्यक्ति के माध्यम हैं । कामवृत्ति की उत्तेजना आतंरिक प्रतिक्रिया है । आनन्द - केन्द्र पर ध्यान करने से वह उत्तेजना नियंत्रित हो सकती है ।
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अन्तर्यात्रा
कामवृत्ति को वश में करने का दूसरा उपाय है— अन्तर्यात्रा । जब हम चेतना को रीढ की हड्डी के निचले सिरे से लेकर ज्ञानकेन्द्र (मस्तिष्क) में ले जाते हैं तब समूचे मेरुदंड की प्रणाली पर हमारा कंट्रोल हो जाता है । मेरुदंड बहुत महत्त्वपूर्ण अवयव है | अनेक स्वचालित प्रवृत्तियों का नियंत्रण मेरुदंड के पास है । मस्तिष्क बड़ा है । वह सब पर नियन्त्रण करने में सक्षम है। वह मेरुदंड के कार्य में सीधा
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