________________
काम परिष्कार के सूत्र । ५५ आदमी किसी भी अवस्था में चला जाए, उसे भूख लगती है, प्यास लगती है। भूख और प्यास के न लगने पर माना जाता है कि व्यक्ति बीमार है, रोगग्रस्त है । जीवन-यात्रा के लिए भूख भी जरूरी है और प्यास भी जरूरी है। भूख और प्यास पर विजय पाना है तो उनके हेतु को जानना होगा। वे क्यों और कैसे उत्पन्न होते हैं, यह जानना होगा। हमारे आचरण और व्यवहार के दो हेतु हैं-आतंरिक और बाह्य । भूख और प्यास की उत्पत्ति का मूल हेतु है आन्तरिक । बाह्य हेतु उनका उद्दीपन कर सकता है, पैदा नहीं कर सकता। कामवृत्ति का मूल हेतु
इसी प्रकार कामवृत्ति का मूल हेतु आन्तरिक है । बाह्य वातावरण उसको उद्दीप्त कर सकता है, पैदा नहीं कर सकता । कामवृत्ति परिस्थितिजनित नहीं होती । परिस्थिति उसके उद्दीपन में सहयोगी हो सकती है, होती है। इस वृत्ति की जनक है आन्तरिक परिस्थिति । अन्तर में काम की तरंग उठती है और वह समूचे शरीर-तंत्र को प्रभावित कर देती है, नाड़ीतंत्र को उत्तेजित कर डालती है । बाह्य परिस्थिति यदि अनुकूल होती है तो उत्तेजना बढ़ती है और व्यक्ति वैसा आचरण कर डालता है। कामवृत्ति का मूल उत्पादक है आतंरिक वातावरण । इसके साथ-साथ हमें शारीरिक और कार्मिक-~-इन दो आधारों पर भी विचार करना होगा। कामवृत्ति के जागने का शारीरिक आधार भी होता है और कार्मिक आधार भी होता है। कर्म-संस्कार भी इसमें काम करते हैं। कामवृत्ति का मूल कारण है—मोह के परमाणु । कर्मशास्त्र की भाषा में इन्हें वेद के परमाणु कहा जाता है। ये कामवृत्ति के मूल घटक तत्त्व हैं। उस तरंग को स्थान देने वाली मानसिक दशा भी बनती है। उसका शारीरिक आधार है 'लिम्बिक सिस्टम' । यह हमारे मस्तिष्क का ही एक हिस्सा है । इसके साथ जुड़ा हुआ है इसी का एक भाग हाइपोथेलेमस । साथ-साथ उस पर नियन्त्रण करने का आधार भी हमारे पास है। वह है ‘लम्बर रीजन' जो मेरुदण्ड की प्रणाली में होता है। यह कामवृत्ति पर नियन्त्रण करता है। हमें और अधिक ध्यान देना होगा, विचार करना होगा कि यह वृत्ति कैसे पैदा होती है, शरीर के किस अवयव विशेष पर प्रभाव डालती है और किस प्रकार इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है?
नियन्त्रण की एक टेक्निक होती है। संसार में निरुपाय कुछ भी नहीं है । उपाय - को जान लेने पर सब सहज-सरल हो जाता है ।आदत को बदला जा सकता है । उस पर नियन्त्रण किया जा सकता है। आवश्यकता है सही उपाय की समवृत्ति श्वासप्रेक्षा
कामवृत्ति पर नियंत्रण पाने के लिए समवृत्ति श्वासप्रेक्षा को काम में लेना होगा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org