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काम की समस्या और संयम / ५१
वृत्ति है । उसके सेवन में कोई दोष नहीं है । बाहरी दृष्टि से कोई दोष नहीं है—यह मान भी लें क्योंकि एक अब्रह्मचारी आदमी शरीर से स्वस्थ हो सकता है, वह मांसल और सुन्दर लग सकता है । उसका चेहरा तेजस्वी और दीप्तिमान् हो सकता है; किन्तु आन्तरिक दृष्टि से वह खोखला ही होता है ।
आचार्यश्री दिल्ली में थे। पत्रकार गोष्ठी थी। एक पत्रकार ने पूछा-साधु ब्रह्मचारी होते हैं। उन्हें बहुत तेजस्वी होना चाहिए। उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट होना चाहिए। चेहरे पर चमक होनी चाहिए। पर आपके साधुओं में यह सब दिखाई नहीं देता। मैंने उस समय कुछ समाधान भी दिया । पर मेरे मन में एक प्रश्न पैदा हो गया कि क्या पत्रकारों का प्रश्न समुचित है ? मैंने उसी दिन से खोज प्रारंभ की। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि शरीर पुष्ट होना, रक्त का लाल होना, शरीर में चमकदमक होना-इन सब से ब्रह्मचर्य का कोई संबंध नहीं है। जो व्यक्ति इन सबका संबंध ब्रह्मचर्य के साथ जोड़ता है, वह बहुत बड़ी भ्रान्तियां पैदा करता है । मेरा यह कथन सुनने में अटपटा-सा लगता हो, पर है यह एक सचाई । मैं महावीर को उद्धृत करूं, बुद्ध और कबीर को उद्धृत करूं, आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी को उद्धृत करूं-इन सब महात्माओं ने साधक का लक्षण जो बतलाया है, वह विचित्र है। महावीर ने ब्रह्मचारी के लिए एक विशेषण प्रयुक्त किया है—'भासच्छन्नेव जायतेजसे'–ब्रह्मचारी राख से ढकी अग्नि की भांति होता है। बाहर से कुछ नहीं दिखता, भीतर में ज्योति प्रज्वलित रहती है। ब्रह्मचारी वह होता है जिसके भीतर प्राण की ज्वाला प्रज्वलित होती है और ऊपर से वह रूखा-सूखा-सा लगता है। ठीक इससे उल्टा होता है भोगी आदमी। वह बाहर से चमक-दमक वाला होता है और भीतर से सर्वथा शून्य । उसकी प्राण-ज्वाला बूझ जाती है। सारी प्राण-विद्युत् चुक जाती है। प्राण-ऊर्जा का प्रभाव
जीवन का मूल आधार है-प्राण-शक्ति, वाइटेलिटी । जीवन का आधार रक्त और मांस नहीं है। लोगों ने यह मान रखा है कि शरीर में रक्त अच्छा रहेगा तो चमक रहेगी, अन्यथा नहीं। किन्तु इसका शक्ति के साथ सीधा संबंध नहीं है। वर्तमान शताब्दी में एक महान् शक्तिशाली व्यक्ति हुआ। उसका नाम था महात्मा गांधी। वे राजनीति और अध्यात्म के संधि-क्षेत्र में हए। एक विचारक ने महात्मा गांधी को देखकर लिखा- 'मैंने दुनिया में इतने भद्दे आदमी में इतना सौन्दर्य नहीं देखा।' यह बात बहुत अच्छी लगी। महात्मा गांधी का वजन केवल सौ पाउंड
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