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________________ ५० / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य विद्युत् नहीं मिलती । वह बड़ा काम नहीं कर सकता । इतिहास में नहीं मिलता कि किसी पेटू आदमी ने बड़ा काम किया हो। बड़ा काम उन्हीं लोगों ने किया है जो भोजन के प्रति संयत थे । कुछेक व्यक्ति भोजन के प्रति सावधान नहीं होते । वे मानते हैं— शरीर को चलाने के लिए भोजन अपेक्षित है। उनका मन कार्य में इतना संलग्न हो जाता है कि वे भूल जाते हैं कि भोजन किया या नहीं । - आइंस्टीन प्रयोगशाला में थे। वे किसी गुत्थी को सुलझाने में तल्लीन थे। भोजन का समय हुआ । पत्नी प्रयोगशाला में एक मेज पर भोजन रखकर चली गई। उसने सोचा- काम से निवृत्त होकर भोजन कर लेंगे। आइंस्टीन काम में लगे रहे । इतने में ही उनसे मिलने एक मित्र आया। आइंस्टीन ने आंख उठाकर भी उसकी ओर नहीं देखा । वह कुछ देर वहां बैठा। उसने प्रतीक्षा की पर आइंस्टीन ने ध्यान नहीं दिया । वह भूखा था । उसने देखा - एक मेज पर भोजन पड़ा है । वह गया और भरपेट भोजन कर, हाथ धोकर चला गया। कुछ समय पश्चात् आइंस्टीन की गुत्थी सुलझी । वे भोजन के लिए मेज पर आए । देखा, बर्तन में कुछ भी नहीं है । थोड़ा पानी पड़ा है । सोचा - सम्भव है मैंने भोजन कर लिया, अन्यथा वे बर्तन खाली नहीं रहते । वे पुनः अपने काम में लग गए। भूख का भान ही नहीं रहा । I हम उन्हें भोजन के प्रति लापरवाह, असावधान या अनासक्त कुछ भी कहें । वे थे इस शताब्दी के महान् बौद्धिक व्यक्ति । उनकी सारी ऊर्जा ज्ञान केन्द्र की ओर प्रवाहित रहती थी । उसे काम - केन्द्र की ओर प्रवाहित होने का कम अवसर मिलता था । यही कारण है कि उनका ज्ञान केन्द्र जागृत हो सका और वे विश्व को अनुपम देन दे सके । 1 प्राण ऊर्जा का ऊर्ध्व-अधोगमन जिस व्यक्ति की प्राण ऊर्जा नीचे की ओर, काम-केन्द्र की ओर प्रवाहित होती है उसमें निम्नतम वृत्तियां जागती हैं और जिसकी प्राण ऊर्जा ऊपर की ओर, ज्ञानकेन्द्र की ओर प्रवाहित होती है उसमें श्रेष्ठ वृत्तियां जागती हैं। वह बहुत नये काम कर सकता है । प्राण ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन का पथ है—– सुषुम्णा का मार्ग । प्राण ऊर्जा जब ऊर्ध्वयात्रा करती है तब उदात्त - वृत्तियां जागृत होती हैं । वह व्यक्ति ज्ञान, व्यवहार और आचार के क्षेत्र में बहुत आश्चर्यकारी विकास कर लेता है । ब्रह्मचर्य : प्राण ऊर्जा का प्रज्वलन आज एक बड़ा संकट उपस्थित होता है । बहुत सारे लोग मनोविज्ञान की ओट लेकर अब्रह्मचर्य को उपादेय बतलाते हैं। उनका कहना है कि काम स्वाभाविक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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