SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काम की समस्या और संयम / ४९ प्रकट कर डाला, जिसने अपने महादेव को जगा दिया, जिसकी आत्मा में सुषुप्त शिव जाग गया, वह आदमी स्वयं शिव बन गया । साधना और ध्यान करने वाला, आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने वाला हर व्यक्ति शिव होता है । जिसने प्रेक्षाध्यान के द्वारा अपनी चित्तवृत्तियों को संयत कर अपने भीतर समाये हुए चैतन्य के स्पन्दनों का थोड़ा-सा साक्षात्कार किया है, उस व्यक्ति ने अपने शिवत्व को जगाने IT अभ्यास किया है। जिसका शिवत्व जाग गया, वह हर आत्मा शिव बन गया । प्रत्येक साधक शिव होता है और वह दर्शन-केन्द्र या तृतीय नेत्र को सक्रिय बनाकर होता है । वह अपनी पिच्यूटरी ग्लैण्ड को सक्रिय कर एड्रीनल को प्रभावित करता है, उसके स्राव को नियन्त्रित करता है । दूसरे शब्दों में, वह स्राव को बदल देता है और काम से अकाम बन जाता है। उसका काम उस तीसरे नेत्र से भस्म हो जाता है, समाप्त हो जाता है काम-विजय की प्रक्रिया I काम - विजय की भी एक प्रक्रिया है । जो इस प्रक्रिया को जाने बिना कामविजय का प्रयत्न करता है वह कभी सफल नहीं होता । परिणाम विपरीत होता है। और वह विक्षिप्त बन जाता है। इस एककोणीय सत्य को हम उसी कोण से देखें, समझें । हम यदि यह मान लें कि कोई ब्रह्मचारी हो ही नहीं सकता या काम की मांग को पूरी किए बिना कोई अपना विकास नहीं कर सकता, पागलपन से मुक्त नहीं हो सकता तो यह बहुत बड़ा भ्रम होगा, असत्य का पोषण होगा । हम इस कोण को न भूलें कि साधना के लिए कामवासना का नियन्त्रण कितना अपेक्षित है । ऊर्जा का उपयोग कहां ? सकता, ध्यान-साधक के लिए आहार का संयम भी बहुत अपेक्षित है । जो व्यक्ति अपनी सारी शक्ति भोजन के पाचन आदि में खपा देता है, वह ध्यान नहीं कर ध्यानी नहीं हो सकता । ध्यान का लाभ उसे कभी नहीं मिल सकता। ऊर्जा सीमित है । वह जितनी है उतनी ही है । उसका उपयोग चाहे भोजन पचाने में किया जाए या मस्तिष्कीय विकास में किया जाए। अतिरिक्त भोजन करने वाले व्यक्ति की सारी ऊर्जा आंतों में खप जाती है । यदि इतनी ऊर्जा पर्याप्त नहीं होती तो मस्तिष्क में काम आने वाली ऊर्जा भी वहां खप जाती है । मस्तिष्क शरीर का दो प्रतिशत भाग है । किन्तु उसे विद्युत् चाहिए बीस प्रतिशत । इतनी विद्युत् मिलने पर ही वह अच्छा काम कर सकता है, अन्यथा नहीं । किन्तु अति भोजन करने वाला व्यक्ति बीस प्रतिशत विद्युत् को भी भोजन पचाने में खपा देता है । मस्तिष्क को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy