SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य कोण होता है। ये प्रतिपादित सचाइयां कोणिक सचाइयां हैं। ये सार्वभौम नहीं हैं। बहुत बार आदमी अर्धसत्य को पूर्णसत्य मान लेता है। यहां भ्रांति का निर्माण हो जाता है। अर्धसत्य को यदि अर्धसत्य की दृष्टि से देखा जाए तो समस्या को सोचने-समझने का और उसका समाधान खोजने का अवसर मिलता है और यदि अर्धसत्य को पूर्णसत्य मान लिया जाता है तो अनेक नयी समस्याएं उत्पन्न हो जाती काम जीवन का एक भाग है। इस सचाई को स्वीकार करते हुए भी हम इस बात को न भूलें कि जिस व्यक्ति ने काम के आनन्द से भी बड़े आनन्द की ऊर्जा को उत्पन्न कर लिया, उसके लिए काम निकम्मा बन गया। जो व्यक्ति काम के आनन्द के स्रोत को बंद कर देता है किन्तु आनन्द के महास्रोत का द्वार उद्घाटित करना नहीं जानता, वह ब्रह्मचारी नहीं बन सकता, पागल बन सकता है। ब्रह्मचारी वही होता है जो काम-जनित सुख के द्वार को रोकने के साथ-साथ सुख के एक महाद्वार को उद्घाटित कर देता है, जिससे आनन्द का सतत प्रवाह प्रवहमान रहता है। तब काम-सुख व्यर्थ बन जाता है, उसकी सार्थकता समाप्त हो जाती है। शरीर में एक ग्रन्थि है—एड्रीनल और दूसरी है-पिच्यूटरी। ये दोनों ग्रन्थियां बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। ये हमारे व्यवहार और आचरण को प्रभावित करती हैं। एड्रीनल ग्रन्थि के कारण ही कामवासना, उत्तेजना, आवेग आदि-आदि जागृत होते हैं। पिच्यूटरी ग्रन्थि के द्वारा यदि उस एड्रीनल ग्रन्थि को नियंत्रित या प्रभावित कर दिया जाता है, निष्क्रिय बना दिया जाता है तो सारी काम-वृत्तियां समाप्त हो जाती हैं, आवेग कम हो जाते हैं, और अपूर्व आनन्द की, वृत्ति जागृत हो जाती है । तब काम अकाम बन जाता है। किन्तु जो व्यक्ति पिच्यूटरी या दर्शन-केन्द्र को जागृत करना नहीं जानता और ब्रह्मचारी बनने की बात करता है या प्रयत्न करता है तो वह सचमुच पागल की अवस्था तक पहुंच जाता है। मनोविज्ञान का भी यही सिद्धान्त है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य भी एककोणीय है। यह इस अर्थ में सत्य है कि पिच्यूटरी ग्रन्थि को जागृत किए बिना कोई ब्रह्मचारी होने का प्रयत्न करता है तो वह निश्चित ही विषाद से भर जाता है, अर्ध-उन्माद की स्थिति में चला जाता है। कामदेव की पत्नी रती विलाप करते हुए कहती है—शिव ने अपने तीसरे नेत्र के द्वारा, प्रलयंकारी नेत्र के द्वारा काम को भस्म कर डाला, राख का ढेर बना डाला। शिव कौन नहीं? प्रत्येक आदमी शिव है। कोई भी अशिव नहीं है । जिसने अपने शिवत्व को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy