SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचर्य को प्रयोग | ४५ आघात लगता है, वह टूटने लग जाती है। ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक भावात्मक उपाय बतलाया गया—मन की साधना करो, मन का जिस ओर लगाव है, उस ओर से मन को मोड़ दो। संकल्प को दूसरी दिशा में प्रवाहित करो। आसन ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक उपाय है आसन । इसका अर्थ है—जो ऊर्जा बनती है, उसको संतुलित कर देना। आसन के साथ कुछ विशेष बातें जुड़ी हुई होती हैं। आसन से अन्त: स्रावी ग्रंथियों एवं नाड़ीतंत्र का, शरीर के सारे अवयवों का संतुलन बन जाता है। सर्वांगासन केवल पैरों को ऊंचा करने वाला आसन ही नहीं है, केवल स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाला आसन ही नहीं है, यह अंत:स्रावी ग्रंथियों को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण आसन है। कुछ आसन ऐसे हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ की दृष्टि से उपयोगी होते हैं। कुछ आसन ऐसे हैं, जो सीधे साड़ी-तंत्र और ग्रंथितंत्र को प्रभावित करते हैं। थायराइड ग्रंथि हमारे शरीर-रचना की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। वह भावना से भी जुड़ी हुई है। कहा जा सकता है—जिसकी थायराइड ग्रंथि गड़बड़ा गई, एक प्रकार से उसका सारा जीवन ही गड़बड़ा गया। सर्वांगासन से थायराइड ग्रंथि प्रभावित होती है। एक आसन है शशांक आसन । यह केवल पेट को ही प्रभावित नहीं करता, एड्रीनल गलेण्ड को भी प्रभावित करता है। ब्रह्मचर्य की साधना में इन आसनों का महत्व स्वत: स्पष्ट सुकुमारता छोड़ें सुकुमारता को छोड़ना, यह भी एक उपाय है। सुकुमारता के त्याग के लिए श्रम जरूरी है। श्रम चाहे विहार का हो या आसन का हो । महावीर ने कहा-सौकुमार्य को छोड़ो। जहां ज्यादा सुकुमारता आएगी वहां काम को निमंत्रण होगा। कोमल शय्या, कोमल गद्दे और बिछौने—ये सुकुमारता के जितने चिह्न हैं, वे काम को सीधा निमंत्रण देने वाले हैं। जो व्यक्ति इस सौकुमार्य में डूबा रहेगा, उसका न ज्ञान में मन लगेगा, न ध्यान और स्वाध्याय में मन लगेगा। उसका मन उचटा-उचटा रहेगा। वह कोई काम नहीं कर पाएगा। सुकुमारता से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है हमारा मस्तिष्क । मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियां हैं। उनमें से एक भी प्रकृति की तरंग उठती है तो हमारा मस्तिष्क प्रभावित हो जाता है, उसमें विकति आ जाती है। जो व्यक्ति अपने मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy