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४६ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य को निर्मल रखना चाहता है, मस्तिष्क को पवित्र रखना चाहता है, उसे बहुत सावधान रहना पड़ेगा, जागरूक रहना होगा, बार-बार आत्म निरीक्षण और आत्म चिन्तन करना होगा। इतना तीव्र प्रयत्न करने पर ही काम से अकाम की दिशा में प्रस्थान संभव बन सकता है। हम इस दिशा में प्रयत्न न करें तो अकाम सिद्धि या ब्रह्मचर्यसिद्धि का स्वप्न कभी सफल नहीं बन पाएगा। यथार्थ का धरातल ___ हमें यथार्थ के आधार पर चलना चाहिए, केवल उपदेश या भावना के आधार पर नहीं। यह एक यथार्थ है—जितनी जागरूकता रहेगी उतनी ही पवित्रता और निर्मलता बढ़ेगी। जितनी जागरूकता में कमी आएगी उतनी ही निर्मलता और पवित्रता प्रभावित होगी। महावीर ने अकाम सिद्धि के जो प्रयोग बतलाए हैं, वे काम में लिये जाएं तो जागरूकता की समस्या नहीं होगी। आदमी चलता है, हवा का एक झोंका आता है, बाधा खड़ी हो जाती है। यदि उसका संकल्प मजबूत होता है तो बाधा टिक नहीं पाती। जिसका संकल्प मजबूत है, जिसमें प्रयोग करने की प्रबल भावना है, वह काम के द्वारा उपस्थित होने वाली बाधाओं को धीरे-धीरे पार करता चला जाएगा और एक दिन अकाम की स्थिति को पा लेगा। यदि प्रयोग नहीं चलेंगे, आत्मालोचन और आत्म निरीक्षण का क्रम नहीं चलेगा तो मन पर मैल जमता चला जाएगा और वह इतना गाढ़ा बन जाएगा कि उसमें बदब आने लगेगी। कहा गया--तीर्थंकरों की सांस कमल की सुगंध जैसी होती है। केवल तीर्थंकरों की ही नहीं, उन सब व्यक्तियों की सांस अच्छी होती है, जिनके विचार अच्छे और पवित्र होते हैं। गंध के आधार पर भी आदमी के चरित्र को जाना जा सकता है। ब्रह्मचर्य की सिद्धि के जो प्रयोग हैं, उन्हें काम में लें, हमारे विचार पवित्र बनते चले जाएंगे, कामनाओं, वासनाओं और निषेधात्मक भावों पर नियंत्रण सधता चला जाएगा, हम अपने इष्ट की सिद्धि को प्राप्त हो जाएंगे।
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