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________________ ४४ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य होना। जितना खाया जाता है, वह पचता नहीं है, जमा होता चला जाता है, वह धीरे-धीरे सड़ान्ध पैदा करने लग जाता है, अशुद्ध बन जाता है। इस स्थिति में चित्त और मन की पवित्रता प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। ब्रह्मचर्य-सिद्धि के ये दो उपाय—निर्बल आहार और अल्प आहार-भोजन से संबद्ध हैं। हम आहार का विवेक करें। आहार का विवेक सम्यक होगा तो साधना सम्यक् रूप से संपादित होती चली जाएगी। कार्योत्सर्ग - ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक उपाय है-खड़े खड़े कायोत्सर्ग करना । ब्रह्मचर्य की साधना का यह महत्वपूर्ण उपाय है- पुरुष दोनों हाथों को ऊंचा कर ध्यान करे। स्त्री के लिए यह निषिद्ध है । बीदासर के एक श्रावक हुए हैं नेमीचंदजी सेखानी । वे दोनों को ऊंचा कर खड़े-खड़े सामायिक किया करते थे। खड़े खड़े ध्यान करना साधना की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें ऊर्जा का एक वलय बनता है । ऊर्जा एक स्थान पर ज्यादा संचित नहीं होती । हमारे शरीर की यह प्रकृति है कि ऊर्जा नीचे की ओर ज्यादा जाती है । इस ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाना बहुत जरूरी है । ऊर्जा को ऊपर ले जाने के लिए सीधा होना जरूरी है। चाहे लेटकर सीधे हों या खड़े-खड़े। यह एक उपाय है ऊर्जा के ऊर्चीकरण का, ब्रह्मचर्य की सिद्धि का। ममत्व का विच्छेद __ ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक उपाय है—ममत्व का विच्छेद । मनुष्य सामाजिक प्राणी है । वह समाज के साथ जीता है इसलिए समाज के साथ लगाव का होना बहुत प्रासांगिक है। महावीर ने ब्रह्मचारी मुनि के लिए विधान किया—एक गांव में ज्यादा मत रहो । यदि मुनि एक गांव में अधिक समय तक रहे तो संभव है, लगाव हो जाए ममत्व हो जाए। उग्र विहार की बात साधना की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है । नव-कल्प विहार का विधान साधुत्व का अनिवार्य नियम नहीं है। यह साधना की दृष्टि से संभावना के वर्जन का नियम है । बहुत सारे विधान निमित्तों से बचने के लिए किए जाते हैं । एक सूत्र दिया गया-ग्राम-अनुग्राम विहार करो, परिचय कम होगा, लगाव कम होगा, ममत्व की गांठ को घुलने का मौका कम मिलेगा। तपस्या : दिशा-परिवर्तन ब्रह्मचर्य की साधना का यह महत्वपूर्ण सूत्र है-अममत्व या अप्रतिबद्धता । इतनी साधना के बाद भी यह लगे–ममत्व की ग्रंथि खुल नहीं रही है तो आहार को एकदम छोड़ दो, तपस्या प्रारम्भ करो। तपस्या से ममत्व की ग्रंथि पर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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