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ब्रह्मचर्य के प्रयोग । ४३ ब्रह्मचर्य-सिद्धि या अकाम-सिद्धि का एक उपाय है--निर्बल आहार । शरीर में बहुत बल पैदा करने वाला आहार न करें। रूसी वैज्ञानिक प्रोफेसर आरोन बेल्कीन ने बतलाया-हमारे मस्तिष्क में तीन सौ 'न्यूरो पेप्टाइड' हार्मोन्स पैदा होते हैं । बेल्कीन की धारणा है—प्रत्येक विचार के साथ एक न्यूरो पेप्टाइड हार्मोन्स पैदा हो जाता है। इसका अर्थ है-जितने विचार हैं उतने ही न्यूरो पेप्टाइड हार्मोन्स बनते हैं। बेल्कीन ने यह मान लिया-जैसे अन्त:स्त्रावी ग्रंथियां होती हैं वैसे ही मस्तिष्क एक बहुत बड़ी अन्त: स्रावी ग्रन्थि है, जो इतने रसायनों को पैदा करता है। वे रसायन हमें प्रभावित करते हैं । आहार और व्यवहार का सम्बन्ध ___ आज के आहारशास्त्री बतलाते हैं—जैसा हमारा आहार होता है वैस ही न्यूरो ट्रांसमीटर (Nyaro transmetter) बनता है और वही न्यूरो ट्रांसमीटर हमारे व्यवहार का निर्धारण करता है। आहार का संबंध मस्तिष्क में पैदा होने वाले रसायनों के साथ है, यह बात बहुत पुरानी है पर उसकी व्याख्याएं आज हो रही हैं। आज हर बात के साथ आहार का संबंध जोड़ा जा रहा है । यदि हमें मन की प्रसन्नता, चित्त की निर्मलता, मस्तिष्क का हल्कापन और विचारों की पवित्रता को बनाए रखना है तो सबसे पहले आहार पर ध्यान देना होगा । जो व्यक्ति इस बात पर ध्यान नहीं देता, वह शायद अपने जीवन के साथ खिलवाड़ करता है। यह मानना चाहिए- जीवन में सबसे ज्यादा जरूरी और सबसे ज्यादा उपेक्षित विषय है आहार । महावीर ने ब्रह्मचर्य की साधना . का पहला प्रयोग बतलाया—निर्बल आहार करो, सुपाच्य और हल्का आहार करो, गरिष्ठ पदार्थ मत खाओ। ऊनोदरी
ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक उपाय है—ऊनोदरी करना, कम खाना, ढूंस-ठूस कर न खाना। जो व्यक्ति ज्यादा खाएगा, अधिक मात्रा में खाएगा, उसका अपान वायु दूषित होगा, मल-क्रिया बिगड़ेगी। नाभि से लेकर नीचे तक जो स्थान है वह अपान का स्थान है । उस स्थान से सारी गड़बड़ियां पैदा होती हैं । जिस व्यक्ति को गैस-ट्रबल है, वह जानता है, गैस की बीमारी से क्या क्या समस्याएं पैदा होती हैं? अपान अशुद्ध रहता है, इसका अर्थ है—अमाशय, पक्वाशय, बड़ी आंत का जो पूरा भाग है, वह शुद्ध नहीं रहता। जब अपान वायु अशुद्ध होती है तब बुरे विचार, बुरे स्वप्न, हिंसा का भाव, वासना का भाव उद्दीप्त होता रहता है। अपान वायु की अशुद्धि का मुख्य कारण है—अति भोजन । ज्यादा खाने का अर्थ ही है कब्ज
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