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३६ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य
६. स्त्रियों के प्रति दौड़ने वाले मन का त्याग करे । ७. काम-कथा न करे ।
८. वासनापूर्ण दृष्टि से न देखे ।
९. परस्पर कामुक भावों का प्रसारण न करे । १०. ममत्व न करे ।
११. शरीर की साज-सज्जा न करे । १२. मौन करे ।
१३. मन का संवरण करे ।
१४. सदा पाप का परिवर्जन करे ।
निमित्त: उपादान
एक ओर प्रश्न है उपादान का तो दूसरी ओर प्रश्न है निमित्त का । एकान्त दृष्टि कभी निमित्तों की ओर झुक जाती है तो कभी उपादान की ओर । सचाई तब सामने आती है जब हम सापेक्ष दृष्टि से विचार करते हैं। हम न केवल उपादान को पकड़ें और न केवल निमित्तों को पकड़ें । ब्रह्मचर्य की सिद्धि के लिए इन दोनों की सापेक्षता अपेक्षित है ।
केवलं न निमित्तानि, साधनानि न केवलं । सापेक्षता भवेदेषां, ब्रह्मचर्यस्य सिद्धये ॥
स्थूलभद्र का निदर्शन
ब्रह्मचर्य की सिद्धि के लिए हमें दोनों की सापेक्षता को समझना है । घटनाओं की मीमांसा करें या निमित्तों की । विचित्र घटनाएं घटित हुई हैं । स्थूलभद्र का प्रसंग हमारे सामने आता है । एक ओर कहा गया - मुनि वेश्या के मोहल्ले में गोचरी भी न जाए। इसे ब्रह्मचर्य का बाधक तत्त्व मान लिया गया। दूसरी ओर स्थूलभद्र वेश्या के मोहल्ले में ही नहीं गए, वेश्या के घर में गए। वे वेश्या के घर एक दो दिन नहीं रहे किन्तु चातुर्मासिक प्रवास किया। आचार्य की आज्ञा से चतुर्मास किया, अनाज्ञा से नहीं । ब्रह्मचर्य के संदर्भ में एक निर्देश है— प्रणीत भोजन न करे 1 स्थूलभद्र ने वेश्या के घर रहते हुए प्रतिदिन षड्स युक्त भोजन किया । वेश्या ने हाव-भाव से स्थूलभद्र को अपनी ओर खींचने का प्रयत्न किया । स्थूलभद्र के सामने उसने कामोद्दीपक गीत-संगीत और नृत्य प्रस्तुत किया । वेश्या कोशा ने पूर्व भोग की स्मृतियां भी दिलाई।
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