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ब्रह्मचर्य के साधक-बाधक तत्त्व । ३७
चित्रशाला विशाला मदनालय-सी मलयाचल सी मोहक सी मादक सी अतीत स्मृति सी प्रियंकरा कल्पना-सी मनोहरा
याद करो याद करो पुन: सहवास करो तिमिर का नाश करो। यौवन है दो दिन का सार यही जीवन का। बने हो क्यों योगिराज। उचित नहीं महाराज! आलंबन सहित करो। निराशा का आवरण दूर करो याद करो याद करो
पुन: सहवास करो। वेश्या का यह भावपूर्ण अनुरोध भी स्थूलभद्र के संकल्प को नहीं हिला सका। जिस कोशा वेश्या के साथ स्थूलभद्र बारह वर्ष तक रहे, भोगों में डूबे रहे, वह वेश्या स्थूलभद्र के संकल्प के समक्ष पराजित हो गई। किसे बाधक तत्त्व कहा जाए और किसे साधक तत्त्व? जरूरी हैं नियम
हम इस सचाई को समझे—जब तक मनोबल का विकास नहीं होता तब तक
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