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३४ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य
पूरक और रेचन का समय समान और कुम्भक का समय उससे आधा होना चाहिए। यह क्रिया बढ़ाते-बढ़ाते पन्द्रह-बीस बार तक करनी चाहिए। वीर्य के ऊर्ध्वारोहण का संकल्प जितना दृढ़ और स्पष्ट होगा, उतनी ही काम-वासना कम होती जाएगी। कुक्कुटासन
इससे काम-वाहिनी स्नायुओं पर दबाव पड़ता है । उससे मन शक्तिशाली और प्रशान्त होता है । काम-वासना क्षीण होती है।
मन की स्थिरता होने से वायु की स्थिरता होती है। वायु की स्थिरता से वीर्य की स्थिरता होती है। वीर्य की स्थिरता से शरीर की स्थिरता प्राप्त होती है। कहा भी है:
मनःस्थैर्यात् स्थिरो वायुस्ततो बिन्दुःस्थिरो भवेत्।
बिन्दुस्थैर्यात् सदा सत्त्वं, पिण्डस्थैर्यं च जायते ।। ऊर्ध्वाकर्षण की प्रक्रिया केवल पुरुषों के लिए है। स्त्रियों के लिए संकल्प शुद्धि का अभ्यास सहायक हो सकता है ।
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