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ब्रह्मचर्य का शरीरशास्त्रीय अध्ययन | २९
वृषण ग्रन्थि
यह पुरुष के ही होती है। यह अण्डकोश में होती है। इसके रसस्राव से पौरुष जागता है और दाढ़ी-मूंछे आती हैं। पैनक्रिया ग्रन्थि
यह दो आंतों के बीच में होती है । एड्रीनल या सुप्रारीनल ग्रन्थि
ये दोनों ग्रन्थियां गुर्दे के ऊपरी हिस्से में होती हैं। इनके स्राव शरीर के लिए बहुत आवश्याक होते हैं। इनसे साहस मिलता है। ये स्राव यकृत की चीनी को रक्त के द्वारा मांसपेशियों में ले जाते हैं। यह मांसपेशियों को जूझने की शक्ति देती है। पैराथाइरायड ग्रन्थि
कण्ठमणि के पास गेहूं के दाने के बराबर चार ग्रन्थियां होती हैं । इन्हें पैराथाइरायड कहा जाता है । ये रक्त में कैल्शियम, फासफोरस आदि का उचित संतुलन बनाए रखती
तृतीय नेत्र ग्रन्थि
यह मस्तिष्क में होती है। यौवनलुप्त ग्रन्थि
यह सीने में होती है।
इनका कार्य अज्ञात है। प्रस्तुत विषय का सम्बन्ध वृषण ग्रन्थियों से है । वृषण ग्रन्थियां दो स्राव उत्पन्न करती हैं-बहि:स्राव और अन्त:स्राव । धमनियों द्वारा वृषणग्रन्थियों से रस-रक्त आता है। उसे प्राप्त कर दोनों स्रावों के उत्पादक अपने-अपने स्राव को उत्पन्न करते हैं।
वीर्य अण्डकोश में उत्पन्न होता है। उसकी दो धाराएं हैं-एक वीर्याशय, जो मूत्राशय और मलाशय के मध्य में है---में जाती है। दूसरी रक्त में मिलकर शरीर में दीप्ति, मस्तिष्क में शक्ति, उत्साह आदि पैदा करती है । वीर्याशय भरा रहे तो दूसरी धारा रक्त में अधिक जाती है । वह स्थिति शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है । वीर्याशय खाली होता रहे तो वीर्य पहली धारा में इतना चला जाता है कि दूसरी को पर्याप्त रूप से मिल ही नहीं पाता । फलत: दोनों प्रकार के स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है । वीर्याशय खाली न हो, इसका ध्यान रखना स्वास्थ्य का प्रश्न है।
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