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२८.
ब्रह्मचर्य का शरीरशास्त्रीय अध्ययन
शरीर- शास्त्र के अनुसार शरीर में आठ ग्रन्थियां होती हैं: १. श्लैष्मिक या पीयूष (पिच्यूटरी)
२. कण्ठमणि (थाइरायड )
३. वृषण
४. सर्वकिण्वी(पैनक्रिया)
५.
एड्रीनल या सुप्रानल ६. पैराथाइरायड
७. तृतीय नेत्र (पीनियल बॉडी)
८. यौवनलुप्त (थाइमस)
पीयूष ग्रन्थि
यह ग्रन्थि दिमाग के नीचे होती है । यह थाइरायड, पैराथाइरायड, एड्रीनल, पैनक्रिया व वृषण कोशों के स्रावों को नियंत्रित करती है । इस ग्रन्थि के रसों का कार्य इस प्रकार है:
प्रथम रस का कार्य — शरीर-विकास ।
द्वितीय रस का कार्य - शरीर के जल या नमक का सन्तुलन ।
तृतीय रस का कार्य - गुर्दे के कार्य का नियंत्रण |
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पीयूष ग्रन्थि काम करे तो काम शक्ति नष्ट हो जाती है कण्ठमणि ग्रन्थि
यह गर्दन में श्वास नली से जुड़ी हुई होती है । इसका आकार तितली के समान होता है । इसका रसस्राव अधिक होने पर शरीर को अधिक पोषण की जरूरत होती है। क्षुधा बढ़ जाती है किन्तु अन्य अंग साथ नहीं देते, इसलिए वह कमी पूरी नहीं होती । ऐसी स्थिति में दुर्बलता आ जाती है। इस ग्रन्थि से रस कम निकले तो बुढ़ापा आ जाता है, सर्दी अधिक लगती है. भूख कम हो जाती है, शिथिलता और उदासी रहती है
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