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________________ २० । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य राख से ढकी आग कुछ लोगों में यह प्रश्न होता है कि जो ब्रह्मचारी होगा, उसका शरीर तेजस्वी होगा, मजबूत और दृढ़ होगा। यह भी बहुत बड़ी भ्रांति है। अच्छा चमकता हुआ चेहरा तो उस व्यक्ति का होगा, जिसका खून ज्यादा अच्छा है। जो अच्छा खाता है, पीता है, पाचन अच्छा है और रक्त अच्छा बनता है तो उसका चेहरा चमकेगा। वैसे व्यक्ति को हमने देखा है, जो घोर अब्रह्मचारी है, उसका चेहरा ऐसा चमक रहा है मानो लहू टपक रहा हो । खोजा गया तो पता चला कि प्राचीन साहित्य में ब्रह्मचारी के लिए कहा गया कि वह राख से ढकी हई आग है-भीतर में ज्योति है बाहर राख है। क्योंकि उसने अपनी साधना के द्वारा, तपस्या के द्वारा शरीर को इतना तपा लिया कि मांस तो बहुत सूख गया है---बाहर से रूखा लग रहा है और भीतर में ज्योति जल रही है । संतवाणी को देखा तो कबीर की वाणी में मिला कि 'बाहर से तो कछु य न दीखै, भीतर जल रही जोत ।' बाहर से तो कुछ नही दिख रहा है, भीतर में ज्योति जल रही है। एक तेजपुंज जैसा हो रहा है। आचार्य भिक्षु की वाणी में मिला— 'मांस लोही कम हवै तपसी तणों जो तपस्वी है उसके मांस भी कम होगा, रक्त भी कम होगा । वह तो बेचारा सूख जाता है। योगी का पहला लक्षण है- शरीर की कृशता। धर्मचन्द ने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा-कलकत्ता में मैं एक योगी से मिला । उसको आप द्वारा लिखी गई योग की कुछ पुस्तकें दी। उसने उलट-पुलट कर देखा। कुछेक बातों पर उसका ध्यान गया। उसने पूछा---इन पुस्तकों में जो लिखा है वह अनुभव की वाणी है या केवल सिद्धांत की बात है ? मैंने कहाअनुभव की। फिर उसने पूछा-लिखने वाले का शरीर कृश है या चर्बी से भरपूर? मैंने कहा-अत्यन्त कृश । योगी बोला---ठीक है, मैं समझ गया। ब्रह्मचर्य की शक्ति ब्रह्मचारी में इतना धैर्य होगा कि वह हर बात को सहन कर लेगा, अधीर नहीं बनेगा। धीर की परिभाषा करते हुए कवि कहता है--विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीरा:--विकार का निमित्त होने पर भी जिसका चित्त विकृत नहीं होता, वह धीर होता है । यही धृति है । ब्रह्मचर्य के द्वारा धृति का विकास होता है, मनोबल का विकास होता है । लोग आश्चर्य करते हैं कि गांधी का एक मुट्ठी भर हड्डी का शरीर था इतना दुबला-पतला, सुन्दर भी नहीं थे, चमकता हुआ चेहरा भी नहीं था। किन्तु मनोबल इतना था कि बड़ी से बड़ी सत्ता के सामने कभी झुकने या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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