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ब्रह्मचर्य / १९
वासना गोनाड़ में जागती है और उत्तेजना एड्रीनल के पास ।उनके स्राव जब अधिक बढ़ते हैं तब यह अधिक वाली बाता होती है। अन्यथा जीवन में जितना अपेक्षित
और आवश्यक है उतना हो जाता है और शेष ध्यान दूसरी बात में रहता है। तनाव काम का
एक स्थिति यह है कि काम का तनाव इतना बढ़ जाता है कि इसके अलावा कुछ दिखता ही नहीं है। बहुत सारे लोग इस प्रकार पागल बन जाते हैं कि जिसको चाहते हैं, उसका संयोग नहीं मिलता है तो आत्महत्या कर लेते हैं। न जाने कितने युवक-युवतियां आत्महत्या करते होंगे। और भी न जाने कितने अपराध और कितनी समस्याएं पैदा होती होंगी। इसका कारण है कि उनमें नियन्त्रण करने की क्षमता नहीं है । पानी तालाब में उतना ही आए जितना उसमें समा सकता है । ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि नाले को बन्द किया जा सके । बांध है। उसमें उतना ही पानी आए जितनी उसकी क्षमता है। अतिरिक्त पानी आ जाए तो बांध टूटने का खतरा भी पैदा हो जाता है। यह माना गया है कि सामान्य आदमी में यह भाव उतना ही आए जितना उसके शारीरिक, मानसिक आदि दृष्टियों से हानि न पहुंचाते हुए अपना काम कर सके। मानसिक संयम की साधना
जिन लोगों ने ब्रह्मचर्य के इन पहलुओं पर शारीरिक दृष्टि से, मानसिक दृष्टि से, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से विचार नहीं किया, वै ब्रह्मचर्य के बारे में बहुत भ्रांतियां पालते हैं । शारीरिक दृष्टि से जैसे मनोविज्ञान का सिद्धांत है कि यदि आदमी कामभोग का सेवन नहीं करता है तो वह भी स्वस्थ नहीं रहता। यह एक बड़ी भ्रांति है। जो लोग ब्रह्मचारी रहते हैं, वे बहुत स्वस्थ रह सकते हैं। पर ठीक यही बात है कि उसके साथ मानसिक स्तर पर विचार करना होगा कि शरीर से वह अब्रह्मचर्य का सेवन नहीं कर रहा है पर मन से निरन्तर उसका सेवन कर रहा है तो वह शरीर से बच रहा है किन्तु मन बिलकुल खुला है तो पागलपन जरूर आएगा, कठिनाई पैदा होगी। उसके साथ-साथ जब शारीरिक संयम करना है तो पहले मानसिक संयम करने की बात सीखनी होगी कि मन से कैसे संयम करें और मन से संयम करने की बात सीखनी है तो आध्यात्मिक संयम की बात सीखनी होगी कि भीतर के स्रावों को, भीतर के रसायनों को कैसे नियंत्रित कर सकें एवं विद्युत् प्रवाहों को कैसे संतुलित कर सकें। यह साधना करनी होगी। आध्यात्मिक साधना होगी तो मानसिक साधना होगी और मानसिक साधना होगी तो शारीरिक साधना होगी।
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