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________________ १८ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य तीन अवस्थाएं ____ अति-कामुकता, कामुकता और अकामुकता—ये तीन अवस्थाएं बन जाती हैं। एक गृहस्थ के लिए अकामुकता वाली बात तो होती नहीं। वह कोई संन्यासी तो नहीं जो बिलकुल काम का संपर्क न करे । अब शेष दो वृत्तियां बचती हैं। एक स्थिति यह है—व्यक्ति काम का सेवन करता है । दूसरी स्थिति यह है-वासना उसे विवश कर देती हैं, उसे सताती है । वह सताए नहीं । व्यक्ति नियमन कर सके, इतनी क्षमता तो हर व्यक्ति में जागनी चाहिए। उस पर हमारा नियन्त्रण रहे, हम पर हावी न हों, वे हमारी स्वामी न बनें, हम उनके स्वामी बनें । उन पर हमारा नियन्त्रण हो और हम उन पर हावी हों। इतना ही करना है। आप वीतराग की दृष्टि से कभी न सोचें कि ध्यान करेंगे तो संसार कैसे चलेगा? सब ब्रह्मचारी हो जाएंगे, यह भी अति-कल्पना की बात होगी। यह कभी संभव भी नहीं है । बड़े-बड़े संन्यासियों के लिए भी कितनी कठिनाई की बात होगी, यह भी जानते हैं। इस बात की चिन्ता न करें। यह सोचें कि यह बड़ी जटिल वृत्ति है, इस पर नियन्त्रण करने की थोड़ी-सी भी वृत्ति हमारी जाग जाये। दमन और उदात्तीकरण नियन्त्रण में दो बातें हैं-एक नियन्त्रण होता है दमन से। एक नियन्त्रण होता है उदात्तीकरण से । दमन से और अधिक प्रतिक्रिया होती है, और पागलपन वाली बात आती है। जब आदमी वृत्ति को जबरदस्ती रोकता है, नियंत्रण करता है, नियन्त्रण करता चला जाता है, दमन करता चला जाता है तब दमन की प्रतिक्रिया के स्वरूप चित्त में क्षोभ पैदा होता है, एक प्रकार का पागलपन भी आ जाता है। पूरा नहीं तो व्यक्ति आधा पागल बन जाता है। जो लोग शादी नहीं करते, उन्हें विक्षिप्त अवस्था में हमने देखा है। यह स्थिति आ जाती है अतिनियंत्रण के द्वारा । मैं जिस नियमन की बात कर रहा हूं वह जबरदस्ती दबाना नहीं है, किन्तु उस वृत्ति का उदात्तीकरण करना है। उस वृत्ति को इतना विशाल बना दिया जाता है प्रयोग के द्वारा कि जिससे सताने की बात समाप्त हो जाती है । इसमें दमन नहीं होता, जबरदस्ती नहीं रोका जाता किन्तु यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे वे हार्मोन्स कम स्रवित होते हैं और अपना कम प्रभाव जताते हैं । यह सारा साधना के द्वारा संभव होता है और चैतन्य केन्द्रों का ध्यान इसमें बहुत सहयोगी बनता है । जिन लोगों में ज्यादा उत्तेजना, ज्यादा आवेग, ज्यादा कामवासना जागती है उनके लिए चैतन्य केन्द्रों का ध्यान ज्यादा उपयोगी है। ये सारी वृत्तियां नाभि के आस-पास जागती हैं। काम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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