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________________ चिर यौवन का रहस्य / १५३ प्रेक्षा- ध्यान एक प्रयोग है तनावमुक्ति का । तनाव निरुत्साह पैदा करता है । निरुत्साही व्यक्ति बूढ़ा होता है । युवा वह होता है जो उत्साह को कभी नहीं खोता । आचार्य भिक्षु से पूछा—' प्रमाद का अर्थ क्या है ?' उन्होंने कहा - 'धर्म के ति अनुत्साह' । फिर पूछा - 'अप्रमाद का अर्थ क्या है ?' उन्होंने कहा – 'धर्म के अति उत्साह' । हम एक परिभाषा बनाएं। युवा वह होता है जो अप्रमत्त होता है । बूढ़ा वह होता है जो प्रमत्त होता है। जो अप्रमत्त होगा उसमें धर्म का उत्साह होगा, अपने अस्तित्व के प्रति उत्साह होगा, अपने चैतन्य के जागरण के प्रति उत्साह होगा । बूढ़ा वह होता है जिसका उत्साह मर जाता है, जिसका धर्म या अपने अस्तित्व के प्रति उत्साह मर जाता है । बूढ़ा वह होता है जिसके चैतन्य की लौ बुझ जाती है । यौवन का कोई भी लक्षण दृष्टिगोचर नहीं होता । I भावक्रिया : विकास का आदि-बिन्दु प्रेक्षा- ध्यान एक प्रक्रिया है अप्रमाद के विकास की, चैतन्य के जागरण की । जिस व्यक्ति ने भावक्रिया का थोड़ा-सा भी अभ्यास किया है, वह व्यक्ति अप्रमत्त रहने का अभ्यासी कहा जा सकता है। यदि हम गहरे में जाएं, दर्शन की बहुत सारी गुत्थियों को सुलझाने बैठें तो यह लगेगा कि भावक्रिया ने मनुष्य के विकास में बहुत बड़ा योग दिया है । भावक्रिया ने ही प्राणी को निगोद (वनस्पति) से मनुष्य की अवस्था तक पहुंचाया है | निगोद विकास का आदि-बिन्दु है और मनुष्य अवस्था विकास का चरम बिन्दु है। निगोद प्राणियों का अक्षय कोष है। वहीं से सारा विकास प्रारंभ होता है । मनुष्य का जीव जब उस निगोद में था तब एककोशीय प्राणी के रूप में था। कोई संकल्प जागा, भावक्रिया होती रही, अल्प-विकसित चेतना को विकसित होने का योग मिलता रहा । वह चलते-चलते चेतना - विकास का चरम बिन्दु मनुष्य अवस्था तक पहुँच गया । अमनस्क अवस्था से समनस्क अवस्था तक पहुंच गया । उसमें इन्द्रिय चेतना, मनश्चेतना और बौद्धिक चेतना वेकसित हुई । विवेक चेतना जागी । यह सब भावक्रिया से ही सम्भव हो सका है । क्रियेटिव इवोल्यूसन यूनान के दार्शनिकों ने 'क्रियेटिव इवोल्यूसन' (Creative evolution) पर बहुत विचार किया है। उनका कहना है कि मनुष्य का जो जैविक विकास-क्रम है वह सारा एक संकल्प के द्वारा हुआ है। यदि हम भावक्रिया को ठीक समझ लें तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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