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१५२ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य पश्चिमोत्तानासन आदि रीढ को लचीला बनाने वाले आसन करता है, शक्ति-केन्द्र से ज्ञान-केन्द्र और ज्ञान केन्द्र से शक्ति केन्द्र तक मन की अन्तर्यात्रा करता है, सुषुम्णा मार्ग से प्राण-धारा को प्रवाहित करता है, वह चाहे ८० वर्ष का हो या ९० वर्ष का हो, कभी बूढ़ा नहीं हो सकता । वह पूरे सौ वर्ष पार कर ले, फिर भी बूढ़ा नहीं हो सकता, क्योंकि उसकी रीढ़ की हड्डी का लचीलापन बना रहता है। वह युवा ही है।
प्रेक्षा-ध्यान का प्रयोग रीढ़ की हड्डी को स्वस्थ और लचीली रखने का अचूक उपाय है। ___ युवा वह होता है जिसका मस्तिष्क तनाव से मुक्त रहता है । जो मस्तिष्कीय तनाव से मुक्त है, उसकी आयु कितनी भी क्यों न हो, वह युवा है और जो मस्तिष्कीय तनाव से ग्रस्त है, उसकी आयु चाहे ४०-५० ही क्यों न हो, वह बूढ़ा है। तनाव बुढ़ापा लाता है। तनावमुक्ति बुढ़ापे से मुक्ति दिलाती है। शारीरिक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव-ये तीनों प्रकार के तनाव कोशिकाओं में कठोरता पैदा करते हैं और यह कठोरता बुढ़ापे का मूल कारण है। जो व्यक्ति ध्यान का अभ्यास नहीं करता वह तनाव से सर्वथा मुक्त नहीं हो सकता। कुछेक लोग तनाव-मुक्ति के लिए विभिन्न औषधियों का सेवन करते हैं। लगता है कि कुछ घंटों के लिए उनका तनाव शिथिल हो गया है, पर वे औषधियां और अधिक हानि करती हैं, उसके बहुत बुरे परिणाम आते हैं। तनाव को मिटाने का उपाय है-अपनी जटिल आदतों को बदलना, कषायों को कम करना, आवेगों को शान्त करना । यह सारा ध्यान से ही सम्भव हो सकता है। ___ धर्मगुरु समझाते रहे हैं कि क्रोध मत करो, क्योंकि उससे नरक मिलता है। आज का बुद्धिवादी युवक नरक के भय से किसी बात को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। क्रोध करने से नरक मिलता हो तो भले ही मिले, किन्तु यदि मुझे उससे सुख की अनुभूति होती है तो वह करणीय है त्याज्य नहीं है। आज के आदमी में नरक का भय नहीं रहा। किन्तु यदि आज के आदमी को बताया जाए कि क्रोध से तनाव बढ़ता है, बीमारियां उत्पन्न होती हैं, कैंसर होता है, अल्सर होता है, नाना प्रकार के मनोकायिक रोग होते हैं, तो वह क्रोध को छोड़ने की बात सोच सकता है। क्रोध न करने का प्रश्न केवल परलोक से संबंधित नहीं है, वह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित है। यदि यह बात समझाई जाती है तो हर व्यक्ति उस पर ध्यान दे सकता है। तनावग्रस्त व्यक्ति असमय में बूढ़ा बन जाता है।
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