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________________ चिर यौवन का रहस्य | १५१ युवक कौन? बूढ़ा कौन?-एक वैज्ञानिक विश्लेषण ___ युवक और यौवन की अनेक परिभाषाएं की गयीं । मैं उनके विश्लेषण में नहीं जाऊंगा। मुझे केवल प्रेक्षा-ध्यान के संदर्भ में युवा को समझना है, बूढ़े को समझना है। युवा कौन होता है? बूढ़ा कौन होता है ? यौवन क्या है ? बुढापा क्या है ? मैं इन प्रश्नों की चर्चा आयुर्विज्ञान और मानव-शास्त्र के संदर्भ में करना चाहूंगा। शरीरशास्त्र का कथन है कि मस्तिष्क की कोशिकाएं जब कठोर बन जाती हैं तब आदमी बूढ़ा बनता है। बुढापे का लक्षण है मस्तिष्क की कोशिकाओं का समाप्त हो जाना, उनका लचीलापन मिट जाना, उनका कठोर हो जाना। कठोरता में क्षमता कम हो जाती है। उससे आदमी बूढ़ा बन जाता है । वह बूढ़ा ही नहीं बनता, उसकी सहिष्णुता भी कम हो जाती है, परिस्थितियों को झेलने की क्षमता न्यून हो जाती है, संतुलन कम हो जाता है। यह व्यवहार का अनुभव है कि बूढ़ा आदमी चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है । उसे क्रोध अधिक आता है, शीघ्र आता है। वह किसी बात को सहन ही नहीं कर सकता। बात-बात में अधीरता परिलक्षित होने लगती है। यह उस व्यक्ति का दोष नहीं है। यह तो मस्तिष्कीय मज्जा की कठोरता का परिणाम है। एक शब्द में बूढ़ा वह होता है जिसकी मस्तिष्कीय मज्जा कठोर हो जाती है । युवा वह होता है जिसकी मस्तिष्कीय मज्जा में लचीलापन है, आता है। प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया से मस्तिष्कीय मज्जा को लचीला बनाए रखा जा सकता है, उसको गीला बनाए रखा जा सकता है। जो व्यक्ति शरीर और चैतन्यकेन्द्रों की प्रेक्षा करता है, गहराई में उतरकर उनके अणु-अणु को देखने का प्रयत्न करता है. तो उसकी इस गहरी प्रेक्षा से रक्त और प्राण-शक्ति का इतना संचार होता है कि मज्जा में कठोरता नहीं आती। वह वैसी की वैसी तरल और आर्द्र बनी रहती है। यह आर्द्रता आदमी को केवल बूढ़े होने से ही नहीं बचाती, वह उसके चिड़चिड़ेपन, असंतुलन और उत्तेजना को भी समाप्त कर देती है। बूढ़ा वह होता है जिसकी रीढ़ की हड्डी विकृत और कठोर हो जाती है । युवा वह होता है जिसकी रीढ़ की हड्डी लचीली रहती है। आगम के व्याख्याकारों ने बताया कि आदमी चालीस वर्ष तक युवा होता है और सत्तर वर्ष तक प्रौढ रहता है। यह मध्यम वय है। उसके बाद क्षीणता आती है और आदमी बूढ़ा होता जाता है। आयुर्विज्ञान और स्वास्थ्य-विज्ञान में यह कथन् उचित है। किन्तु ध्यानविज्ञान में यह नियम लागू नहीं होता। जो व्यक्ति पवन-मुक्तासन, धनुरासन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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