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________________ ९५४ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य उस सजनात्मक विकास की व्याख्या को समझ सकते हैं। भावक्रिया के बिना, निरन्तर संकल्प की प्रेरणा के बिना कोई भी प्राणी अविकास से विकास की दशा तक नहीं पहुंच सकता। यह प्रेक्षा का प्रयोग अप्रमाद या सतत जागरूकता का प्रयोग है। यह चैतन्य की दीपशिखा को निरंतर प्रज्ज्वलित रखने का प्रयोग है। इस प्रयोग के द्वारा मनुष्य सदा युवा रह सकता है। जो अप्रमत्त रहता है वह सदा युवा बना रहता है। जो प्रमत्त होता है वह बूढ़ा बन जाता है। बूढ़ा वह होता है जो झपकियां ज्यादा लेता है। युवा झपकियां नहीं लेता। बूढ़ा वह होता है जो अतीत की स्मृतियों में खोया रहता है। यवा वह होता है जो वर्तमान में रहता है। बूढ़ा आदमी निरन्तर अतीत की यादों में रस लेता रहता है। उसे वर्तमान अच्छा ही नहीं लगता। वह अतीत के गण गाता है, अपने अतीत को याद कर खिल उठता है। वह स्मृतियों के कगार पर खड़ा होता है और स्मृत्तियों की बैसाखी के सहारे चलता रहता है। युवा अतीत को समझता है पर जीता है वर्तमान को । वह वर्तमान पर चलता है, खड़ा होता है और उसे जानता-समझता है । वह अतीत की बातों में कभी नहीं उलझता। वह उलझेगा भी क्यों? उसका अतीत है ही क्या? एक बूढ़े व्यक्ति का अतीत ८० वर्ष का है और एक युवा व्यक्ति का अतीत २०-२५ वर्ष का है । वह युवा क्या स्मृति करेगा और कौन से अतीत की प्रशंसा करेगा? उसे रस ही नहीं आएगा। जो केवल अतीत के गीत गाता है वह चालीस वर्ष का युवा भी बूढ़ा है और जो वर्तमान को पकड़कर चलता है वह अस्सी वर्ष का बूढ़ा भी युवा है। जो पुराने के नाम पर जहर पीने को तैयार रहता है और नये के नाम पर अमृत को भी ठुकरा देता है, जिसमें पुरानेपन का इतना मोह और अनुराग हो जाता है, भूतकाल पर इतनी श्रद्धा हो जाती है, वह चाहे कितनी ही कम उम्र का हो, है बूढ़ा ही । बूढ़े को या युवा को अवस्था के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। प्रेक्षा है वर्तमान में जीना प्रेक्षा-ध्यान का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है—वर्तमान में जीना। वह वर्तमान में देखना सिखाता है। वह कहता है-शरीर-प्रेक्षा करो। वर्तमान में शरीर में क्याक्या घटित हो रहा है उसे देखो । कौन-सा पर्याय चल रहा है? कौन-सा पर्याय नष्ट हो रहा है? कौन-सा पर्याय उत्पन्न हो रहा है? क्या-क्या जैविक और रासायनिक परिवर्तन हो रहा है? हृदय का संचालन कैसे हो रहा है? शरीर के रसायन और विद्युत्-प्रवाह किस प्रकार के हो रहे हैं? इन सारी घटनाओं को शरीर में देखना। जो इन सारी घटनाओं को देखता है वह वर्तमान को देखता है और जो वर्तमान को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.je
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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