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१२६ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य का काम भी चल सके और इन दुःखों से भी बचते रहें । तो शान्ति और प्रसन्नता का अरतरण हो सकता है । हमारे तीर्थंकरों, अध्यात्म के आचार्यों ने यह मध्यम मार्ग सुझाया है, जो इस भव में भी कल्याणकारी है और परभव में भी कल्याणकारी है। इस मार्ग का मूल्यांकन करना और जीना, जीने की कला को उपलब्ध होना है। जिसे यह कला उपलब्ध हो जाती है, उसे सख का रहस्य उपलब्ध हो जाता है।
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