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________________ विषय को नहीं, विकार को जीतें । ११९ मनुष्य ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विवेक का प्रयोग करना सीखा है । जो कुछ आता है, उसे पूरा नहीं लेता। मनुष्य फल लाता है पर उसके छिलके को फेंक देता है। हालांकि आजकल यह विचार भी बन रहा है— छिलका भी नही डालना चाहिए ! छिलका खाना कई दृष्टियों से उपयोगी भी है। मंत्री मुनि मगनलालजी कहा करते थे- थली प्रांत की बहिनें करेले के बीज को निकाल कर फेंक देती हैं। वे यह नहीं जानती कि करेले का बीज स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है। यह सचाई है, पर इससे जुड़ी सचाई यह भी है- कुछ तत्त्व ऐसे हैं, जिन्हें डालना और फेंकना होता है। यह फेंकने और छोड़ने की बात विवेक चेतना से प्राप्त होती है । यदि यह विवेक नहीं होता तो आदमी जी नहीं पाता । केवल मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी विवेक करते हैं । गाय और भैंस जंगल में चरने के लिए जाती हैं। क्या वे सब कुछ खाती हैं? वे विवेक से खाती हैं- खाने की चीज खाती है, न खाने की चीज की ओर मुंह भी नहीं करती। पश् भी प्रत्येक वस्तु नहीं खाता। ऊंट का खाना अलग है, गाय और भैंस का खाना अलग है। बकरी के लिए कहा जाता है कि वह सब कुछ खा जाती है । कुछ हाथ न लगे तो कांटे की बाड़ भी खाने लग जाती है। गुरुदेव का लाडनू चतुर्मास था । हम बाहर से घूमकर आ रहे थे। संध्या का समय था। हमने देखा---बकरियां बाड़ों पर चढ़कर सूखे कांटे चबा रही थी। यह देखकर सहसा मन में एक प्रश्न उभर आया। चरवाहे से पछा-अरे भाई ! अभी बरसात का मौसम है। खाने को हरी घास बहुत है। ये बकरियां बाड़ के कांटे क्यों चबा रही हैं? चरवाहे ने घडाघड़ाया उत्तर दे दिया-महाराज ! आदमी मिठाई खाने के बाद भुजिया खाता है, पापड़ खाता है। ये जंगल में इतना मीठा घास चर कर आई हैं । अब मुंह साफ करना है, भुजिया या पापड़ खाना है तो ये कांटे ही खाएंगी। दो मार्ग प्रत्येक व्यक्ति में विवेक है । मनुष्य में विवेक का विकास हुआ है इसलिए वह विवेक का उपयोग करना जानता है । मनुष्य इन्द्रिय विषयों को क्यों छोड़े? क्यों कम करे? इसलिए कि उसके पीछे विवेक बोल रहा है। आदमी दुःख से बचना चाहता है, दुःख की परंपरा से बचना चाहता है । दो मार्ग उसके सामने हैं—संसार का मार्ग और मोक्ष का मार्ग । भोग भोगो, पांच इन्द्रियों के भोग का आसेवन करो---यह है संसार का पथ । भोग को त्यागो, इन्द्रिय-विषय का निग्रह करो-यह है मोक्ष का पथ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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