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विषय को नहीं, विकार को जीतें । ११७
लोहे की सूइयां । कोशा सधे कदमों से नृत्य करते हुए उस सरसों के ढेर पर नाचने लगी। सरसों के ढेर में कोई कंपन नहीं। कितना सधा हुआ दृश्य । थोड़ा सा भी चूक जाए तो लोहे की सूई पैर को बींध डाले । धनुर्धर उसकी कला-साधना देखकर अवाक् रह गया। उसने उल्लास भरे स्वर में कहा-देवी ! धन्य है आपकी कलासाधना को ! मेरी कला इसके सामने कुछ नहीं है। ____ कोशा बोली-सुकेतु ! एक बाण से आम के गुच्छे को तोड़ लेना या सरसों पर नाच लेना कोई बड़ी कला नहीं है ।
सुकेतु ने पूछा-आप किसे कला मानती हैं?
कोशा ने कहा--कोशा की चित्रशाला में रहना, जो कामशास्त्र के चित्रों से भरी है, षड्रस युक्त भोजन करना, सामने कोशा जैसी नृत्यांगना का निरन्तर प्रणय निवेदन सुनना और इतना होने पर भी निर्लिप्त रहना, यह सबसे बड़ी कला है । आर्य स्थूलभद्र इस कामोद्दीपक चित्रशाला में रहे, षड्रस युक्त भोजन किया, फिर भी मेरे प्रणय निवेदन से उनका मन विचलित नहीं हुआ । यह है साधना, यह है कला। कमलपत्र की निर्लेपता
उत्तराध्ययन सूत्र का एक महत्त्वपूर्ण पद्य है-- रस से विरक्त मनुष्य शोकमुक्त बन जाता है। जैसे कमलिनी का पत्र जल में लिप्त नहीं होता वैसे ही वह संसार में रहकर अनेक दु:खों की परंपराओं से लिप्त नहीं होता
रसे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण ।
न लिप्पई भवमझे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ।। कमल कीचड़ में रहता है पर कीचड़ में लिप्त नहीं होता। यह लेप न होना, नेलेप रहना जीवन की महान् कला है।
बहुत सारे लोग पढ़ते हैं। उनका ज्ञान काफी बढ़ जाता है, जानकारियां बढ़ जाती हैं। हिमालय की ही नहीं, मेरु पर्वत तक की जानकारी हो जाती है। नीम, खेजड़े के वृक्ष की ही नहीं, कल्पवृक्ष की भी जानकारी हो जाती है। हीरे-पन्ने की नहीं, चिन्तामणि रत्न की भी जानकारी हो जाती है। दृश्य और अदृश्य-अनेक तत्त्व जान लिए जाते हैं। जानकारी के साथ-साथ अहंकार भी उतना ही बढ़ जाता है । क्या यह संभव है—ज्ञान हो और अहंकार न हो? ऐसे अनेक प्रश्न हैं-समूह हो और कोलाहल न हो? पानी आए और साथ में मिट्टी न आए? हवा आए और रेत न आए? अच्छी बात सुनें और नींद न आए? यदि ये सब असंभव हैं तो चर्चा,
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