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________________ विषय को नहीं, विकार को जीतें जीने की कला क्या है ? यह प्रश्न अनेक बार उभरता है। हमने उदयपुर में देवीलालजी सामर द्वारा संस्थापित 'लोक कलामण्डल' को देखा। एक कलाकार सिर पर दस-बारह घड़े रखकर नृत्य करता। वे घड़े मकान की छत को छूते हुए प्रतीत होते थे। वह कभी स्टेज पर नाचता और कभी नृत्य करता हुआ धरती पर उतर जाता । वे घड़े उसके सिर पर लंबी कतार जैसे बने रहते। एक भी घड़ा इधर से उधर नहीं होता । उस नृत्य को देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते । क्या हम इसे जीने की कला माने? स्थूलिभद्र के समय की घटना है। सरसों के ढेर पर व्यक्ति नाचता और सरसों का एक दाना भी इधर-उधर नहीं होता। आचार्य श्री तुलसी का वि. संवत् १९९३ में बीकानेर चतुर्मास था। महाराजा गंगासिंह जी की गोल्डन जुबली मनाई जा रही थी। उस समय एक कलाकार ने ऐसा ही नृत्य किया। पट्ट के बराबर सरसों का एक ढेर कर दिया। कलाकार पट्ट पर नाचते-नाचते सरसों के ढेर पर नाचने लगा। सरसों वैसी की वैसी बनी रही। कितनी अद्भुत है यह कला ! क्या यह है जीने की कला? बड़ी कला कोशा भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना थी । एक दिन कुशल धनुर्धर सुकेतु आया। वह कोशा को अपनी प्रेयसी बनाना चाहता था। सुकेतु ने कहा-देवी ! आप मेरी कला देखें ! कोशा ने कहा-कैसी है आपकी कला? सुकेतु ने धनुष हाथ में लिया और आम की शाखा को लक्ष्य कर बाण छोड़ा। उस बाण की सीध में जितने पत्ते और आम थे, वे सीधे धरती पर आ गिरे। सुकेतु ने कोशा की ओर देखते हुए कहा-देवी ! कुशल कलाकार वह होता है, जो एक बाण चलाता है और नीचे से ऊपर तक पूरे लक्ष्य को भेद देता है। कोशा ने कहा-यह कैसी कला है ? मैं आपको दूसरी कला दिखाती हूं। उसने दासी को रंगमंच सजाने का निर्देश दिया। कोशा रंगमंच पर पहंची। सकेत भी वहीं था। सामने मंच पर सरसों का ढेर और उसके बीच में सीधे मुंह खड़ी थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003071
Book TitleMukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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