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/ मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य
जाता है ? इन्द्रियां कब मित्र बनती हैं और कब शत्रु बनती हैं ? ये प्रश्न अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । इन्द्रियां न नितान्त मित्र हैं और न नितान्त शत्रु हैं । एक अवस्था में वे मित्र हैं और एक अवस्था में वे शत्रु का काम भी करती हैं। इन दोनों स्थितियों का सम्यक् बोध आवश्यक है ।
मानवीय जीवन के तीन पक्ष
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अमेरिका के दार्शनिक हेनरी जेम्स बहुत बड़े चिन्तक हुए हैं। उन्होंने मानवीय जीवन को तीन पक्षों में बांटा - एक बाह्य अथवा भौतिक, दूसरा आन्तरिक अथवा मानसिक और तीसरा आध्यात्मिक । इन तीनों भागों में मानव का जीवन विभक्त होता है । बाह्य जीवन व्यक्ति का शरीर है। आंतरिक जीवन उसका मन है, जिसके द्वारा स्मृति, कल्पना और चिन्तन चलता है । आध्यात्मिक जीवन व्यक्ति की आत्मा है | आत्मा, मन और शरीर- इन तीनों का योग है हमारा व्यक्तित्व । यह जेम्स की परिभाषा है ।
जीवन के चार पक्ष
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जीवन विज्ञान एवं प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में मनुष्य के जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया - - शारीरिक, मानसिक, बौद्धक और भावात्मक । जेम्स ने बुद्धि और मन को एक साथ संकलित किया है किन्तु हमारी दृष्टि में बुद्धि का पक्ष मन से भिन्न है । मन स्थायी तत्त्व नहीं है । चेतना स्थायी तत्त्व है, बुद्धि स्थायी तत्त्व है बुद्धि और मन दोनों को एक नहीं किया जा सकता । मन अलग है और बुद्धि अलग है । फ्रायड ने मन पर विचार किया। उसके सामने मूल प्रश्न था माइंड । उन्हीं के शिष्य कार्ल गुस्ताव युंग ने इस विषय को और आगे बढ़ाया । युंग ने कहा— केवल माइंड से सारे शरीर की व्याख्या नहीं की जा सकती इसीलिए उन्होंने चित्त को और जोड़ दिया। मन और बुद्धि के द्वारा जीवन की पूरी व्याख्या की जा सकती है, इन दोनों के द्वारा जीवन को पूरी तरह से समझा जा सकता है I भावों का केन्द्र
जीवन का चौथा पक्ष है- आध्यात्मिक या भावात्मक । भाव बुद्धि से भी परे । भावों का बुद्धि और मन के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । उनका स्वतंत्र अस्तित्व है । वे उत्पन्न होते हैं सूक्ष्म शरीर के प्रकम्पनों से । सूक्ष्म शरीर के प्रकम्पन, भावों के प्रकम्पन भीतर से इस स्थूल शरीर में आते हैं और हृदय में उत्पन्न होते हैं । हृदय को भावों का केन्द्र माना गया है । इस संदर्भ में एक प्रश्न उभरता है— क्या यह
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