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इन्द्रिय-संयम का प्रश्न । १११
पंपिंग करने वाला हृदय भावों का केन्द्र है? जीवन विज्ञान एवं प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में हमनें इस प्रश्न पर गंभीर मंथन किया । हमारा निष्कर्ष रहा—मानव शरीर में दो हृदय होने चाहिए—एक वह हृदय, जो धड़क रहा है, पंपिंग कर रहा है और एक वह हृदय, जो मस्तिष्क में है । जो भाव भीतर से आते हैं, सूक्ष्म शरीर से आते हैं, वे मस्तिष्क के एक भाग में अभिव्यक्त होते हैं। भावों का केन्द्र वह हृदय नहीं है, जो फेफड़े के पास है। वह रक्त-शोधन का काम करने वाला है। भावों का केन्द्र वह हृदय है जो मस्तिष्क में है। प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में उसका स्थान निर्धारित किया गया है हाइपोथेलेमस । यह भावधारा का हृदय होना चाहिए। आयुर्वेद का दृष्टिकोण ___ कुछ वर्ष पूर्व गुरुदेव अहमदाबाद में थे। वहां के प्रसिद्ध वैद्य थे गोविन्द प्रसाद जी। गुरुदेव के सानिध्य में उनके घर पर एक गोष्ठी का आयोजन था। उस गोष्ठी में बोलते हुए प्रसंगवश मैंने कहा--मनुष्य के शरीर में हृदय दो होने चाहिए । यह पंपिंग करने वाला हृदय भाव का केन्द्र नहीं होना चाहिए । भाव का केन्द्र होना चाहिए मस्तिष्क में । इस सन्दर्भ में मैंने हाइपोथेलेमस की विशेष रूप से चर्चा की। यह सुनकर वैद्यजी तत्काल उठे और भीतर जाकर अपना एक छपा हुआ लेख लेकर आए। उस लेख के कुछ अंशों को उद्धृत करते हुए वैद्यजी ने कहाआप जो कह रहे हैं, वह सही है। प्राचीन आयुर्वेद में दो हदय माने गए हैं। मैंने इस लेख में प्रमाणित किया है कि एक हृदय तो पंपिंग करने वाला है और दूसरा मस्तिष्क में होता है। भेलसंहिता आदि अनेक ग्रन्थों के आधार पर इसे प्रमाणित किया गया है। आयुर्वेद में दो हृदय की मान्यता बहुत प्राचीन रही है। जहां भाव पैदा होते हैं उस हृदय का न बुद्धि के साथ संबंध है, न मन के साथ संबंध है । इन्द्रियों का सम्बन्ध शरीर के साथ जुड़ा हुआ है । मस्तिष्क में उनके सारे केन्द्र हैं। इन्द्रियां उपादेय भी हैं ___ व्यक्ति का सारा संपर्क पहले इन्द्रयों के माध्यम से होता है । हर धर्म में इन्द्रिय-संयम की बात कही गई है इन्द्रिय-संयम करो, उन्हें उच्छंखल मत बनाओ। यह बात ज्ञान की दृष्टि से नहीं कही गई है । इन्द्रियों के ज्ञान को बढ़ाना बहुत अच्छा है । जैन दर्शन में एक शब्द का विशेष प्रयोग किया गया-इन्द्रिय-पाटव । दूर-दर्शन, दूर-श्रवण-ये योगज विभूतियां रही हैं । दूर की चीज को देख लेना, दूर की बात को सुन लेना, इन्द्रिय की कुशलता को बढ़ा लेना भी बहुत आवश्यक है । यह एक उलझन भरी बात है। एक ओर इन्द्रियों से काम लेना और जीवन की यात्रा के लिए उनका अधिकतम
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