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इन्द्रिय- संयम का प्रश्न
शिष्य के मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई। वह आचार्य की सन्निधि में पहुंचा । विनम्र प्रणाम पूर्वक बोला — गुरुदेव ! मुनि स्वाध्याय कर रहे हैं और वे कह रहे हैं— इन्द्रियां शत्रु हैं, इन्द्रियां हमारी दुश्मन हैं। यह मुझे अटपटा लगा । इन्द्रियां हमारी शत्रु कैसे ? मैं बाह्य जगत् को इन्द्रियों के द्वारा जान रहा हूं । मेरा सारा सम्पर्क इन्द्रियों के माध्यम से हो रहा है । मैं इन्द्रियों से सारी दुनिया को देखता हूं, दूसरों के साथ सम्पर्क स्थापित करता हूं । अगर आंख और कान - ये दो इन्द्रियां न हों तो बाह्य जगत् मेरे लिए विलुप्त जैसा हो जाए। पूरा सामाजिक जीवन इन दो इन्द्रियों के साथ जुड़ा हुआ है
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समाज का माध्यम : भाषा
समाज का सबसे बड़ा माध्यम है भाषा । भाषा के द्वारा समाज बनता है । जिन प्राणियों में भाषा नहीं हैं, वे अपना समाज नहीं बना पाए। संस्कृत साहित्य में दो शब्द मिलते हैं— समज और समाज । पशुओं का समज होता है, समाज नहीं होता । मनुष्य का समाज होता है। कारण स्पष्ट है - मनुष्य में भाषा है । दूसरे प्राणियों में भाषा का पर्याप्त विकास नहीं है, उनकी भाषा में बहुत थोड़े शब्द हैं । भाषाशास्त्रियों ने पशुओं की भाषा का अध्ययन किया। उनका निष्कर्ष था—- - किसी पशु की भाषा में पांच-सात शब्द हैं और किसी पशु की भाषा में दो-चार शब्द हैं । वे भी अव्यक्त हैं, व्यक्त नहीं हैं । भाषा समाज के निर्माण का मूलभूत तत्त्व है । अगर कान नहीं है तो भाषा का कोई अर्थ नहीं है। दूसरों के साथ सम्पर्क स्थापित करने का एक माध्यम विच्छिन्न हो जाता है। आंख नहीं होती तो भी सम्पर्क विछिन्न हो जाता ।
शिष्य ने कहा- मैं इन्द्रियों से ही सारे बाह्य जगत् को जानता हूं । इस स्थिति में इन्द्रियां शत्रु हैं यह बात कैसे श्रद्धेय हो सकती है ?
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इन्द्रियेणैव जानामि, बाह्यं जगदिदं स्फुटम् । तानि संति च वैरीणि, श्रद्धेयं स्यादिदं कथम् ॥
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