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चिन्तन इन्द्रिय-चेतना का / १०७
जैन दर्शन अतीन्द्रिय चेतना में विश्वास करने वाले दर्शनों में अगुआ दर्शन रहा है। उसमें अकेला चलने का विधान है---यह भी तम करो, वह भी तम करो। किसी की प्रतीक्षा मत करो, किसी की ओर मत देखो, अपने पुरुषार्थ पर भरोसा कर चल पड़ो। यह अकेला चलने की बात, अतीन्द्रिय चेतना की बात व्यक्ति के अन्तमानस में उतर जाए तो जीवन की धारा, चिन्तन की प्रणाली बदल जाए, शांति का मार्ग बहुत प्रशस्त बन जाए।
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