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९८ । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य भी प्राप्त नहीं होता।
जो व्यक्ति धर्म की इस महत्ता को समझ लेता है, जिसकी विवेक चेतना जाग जाती है, उसका गृहस्थ जीवन में आकर्षण नहीं रहता। त्याग का जीवन कितना महान् और उदात्त है, इसका बोध होना जीवन की सार्थकता है। जिस दिन त्याग के मूल्यांकन की चेतना जागेगी, मनुष्य की विवेक चेतना उबुद्ध होगी, उसके आकर्षण की दिशा बदल जाएगी, उसका जीवन-दर्शन बदल जाएगा। वह भोग की नहीं, त्याग की दिशा में प्रस्थान करेगा
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