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७६ / जैन दर्शन के मूल सूत्र
अभिनव विकास है। यदि धर्मकीर्ति वर्तमान युग में होते, उनके सामने हाईजन वर्ग का प्रोबेबिलिज्म (संभावनावाद) का सिद्धान्त सामने होता तो स्याद्वाद पर इतना हलका आक्षेप या व्यंग्य नहीं करते। दही एक पर्याय है। पर्याय पर्याय है। ऊँट भी एक पर्याय है। वर्तमान अवस्था में दोनों पर्याय भिन्न हैं। किन्तु दही के परमाणु ऊँट के शरीर के परमाणु नहीं बन सकते अथवा ऊँट के शरीर के परमाणु दही के परमाणु के रूप में परिवर्तित नहीं हो सकते। यह लक्ष्मण रेखा संक्रमण के सिद्धान्त में कोई नहीं खींच सकता। स्याद्वाद का यह प्रतिपादन भी नहीं है। उसका प्रतिपाद्य है- एक पर्याय में दूसरे पर्याय का प्रतिषेध, भावी पर्याय की सम्भावना का स्वीकार। दही ऊँट नहीं ही है और ऊँट दही नहीं ही है। स्याद्वाद का यह प्रतिपाद्य है। ऊँट दही भी है और दही ऊँट भी है, यह प्रतिपाद्य कतई नहीं है। वर्तमान पर्याय का अस्तित्व और भावी पर्याय का नास्तित्व बतलाने में ही स्यात् पद की कृतार्थता है।
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