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६८ / जैन दर्शन के मूल सूत्र
प्रभावित रहें। जब धर्म और मोक्ष प्रधान होते हैं, तब अर्थ और काम का भी परिष्कार हो जाता है। लोभ और काम का परिष्कार-यह पुरुषार्थ चतुष्टयी के परिष्कार का मार्ग है। जब इन चारों पुरुषार्थों का संतुलित सेवन होता है, तब जीवन-पथ सुगम बन जाता है।
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि आदमी पुरुषार्थ करे, धर्म के क्षेत्र में मोक्ष की प्राप्ति के लिए और वह अर्थ और काम के क्षेत्र में पुरुषार्थ करे तो धर्म से प्रभावित होकर, जिससे कि सामाजिक जीवन में समस्याएं न आएं और आने वाली समस्याओं का समाधान किया जा सके।
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