________________
४४ / जैन दर्शन के मूल सूत्र
का। कोई भी भेद ऐसा नहीं, जिसके साथ अभेद न हो। कोई भी अभेद ऐसा नहीं, जिसके साथ भेद न हो। भेद और अभेद दोनों को जानने वाले दृष्टिकोण का नाम है अनेकान्त दृष्टिकोण, सर्वग्राही दृष्टिकोण। जहां कोई आग्रह नहीं, विग्रह नहीं। सबका संग्रह करने वाला दृष्टिकोण। इस दृष्टिकोण ने सचाइयों को उद्घाटित किया, अनावृत किया। इस दृष्टिकोण को समझकर वस्तुगत सचाइयों को जानें, देखें, परखें तो वास्तविकता का पता चलेगा और सारे संसार को, जगत को जानने का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें प्राप्त होगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org