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________________ दार्शनिक दृष्टिकोण / ४३ जब सूक्ष्म दृष्टि से देखेंगे तब निष्कर्ष आएगा कि यह कपड़ा सफेद ही नहीं है। यह काला भी है, पीला भी है, नीला भी है, लाल भी है, सब कुछ है। क्या यह समझ में आने वाली बात है? आप सूर्य का प्रकाश देखते हैं। आपको सफेद दिखाई देगा। सूर्य की एक किरण में सातों रंग दिखाई देंगे। बहुत सारी बातें स्थूल दृष्टि से नहीं दिखाई देती, सूक्ष्म दृष्टि से दीखने लग जाती हैं। खुली आंखों से देखते हैं तो कुछ भी दिखाई नहीं देता और जब सूक्ष्म यंत्रों के द्वारा देखते हैं तो पता नहीं, कितने जीवन दिखाई देने लगते हैं। बहुत महत्त्वपूर्ण नय है-निश्चय नय, जिसमें वस्तुस्थिति का पता चलता है। एक बार एक वैज्ञानिक ने एक कली का फोटो लिया और उसमें फोटो आया पूरे फूल का। बड़ा आश्चर्य हुआ। फोटो लिया कली का और आया फूल का। दूसरे दिन उसी कली का फोटो लिया, जो फूल बन गया था। उसमें पूरे फूल का फोटो आया। दोनों मिलाए तो वैसा ही फोटो आया जो पहले दिन आया था। निष्कर्ष निकाला कि सूक्ष्म जगत में कली फूल बन गई थी। हमारे स्थूल-जगत में कली अब फूल बनी। सूक्ष्म जगत में घटना पहले घटित हो जाती है और स्थूल जगत में वह घटना बाद में आती है। इस आधार पर आज बहुत सारे निष्कर्ष सामने आ गए। चिकित्सा के क्षेत्र में कहा जाता है कि सूक्ष्म शरीर में बीमारी पहले हो जाती है और स्थूल शरीर में बाद में प्रकट होती है। किसी शरीर में कैंसर हो गया। पता नहीं चलता। बहुत बाद में पता चलता है। एक सूक्ष्म जगत को देखने वाली दृष्टि और एक स्थूल जगत को देखने वाली दृष्टि। दो प्रकार की दृष्टियां है। जिस दृष्टि से हम सूक्ष्म जगत को देखते हैं, उसका नाम है निश्चय नय और जिस दृष्टि से हम स्थूल जगत को देखते हैं उसका नाम है व्यवहार नय। जैन धर्म ने सच्चाई को देखने के लिए दो दृष्टियों का निर्माण किया। एक द्रव्यार्थिक दृष्टि और एक पर्यायार्थिक दृष्टि । दूसरा विकल्प है-निश्चय नय और व्यवहार नय। यानी भेद को देखने वाला दृष्टिकोण और अभेद को देखने वाला दृष्टिकोण। यह एक महत्त्वपूर्ण प्रतिपादन है जैन दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003070
Book TitleJain Darshan ke Mul Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2001
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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