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समस्या और मुक्ति / १३१
तक जानी हुई बात अधूरी ही रह जाती है। ___पंडित ने पंडिताइन से कहा-कल मंगलवार है। अमुक ग्रहों का योग है। मैं एक अनुष्ठान करूंगा। उससे हमारी गरीबी समाप्त हो जाएगी। मैं ठीक समय पर मंत्र का उच्चारण करूंगा। उस समय तुम हंडिया में ज्वार के दाने डाल देना। वे उस योग के प्रभाव से मोती बन जाएंगे। पंडिताइन ने बात जान ली, सुन ली। मन में आस्था नहीं हुई, सन्देह नहीं मिटा। ज्ञान हुआ, पर दर्शन नहीं हुआ। पड़ोसिन ने यह बात सुन ली थी।
मंगलवार का दिन । ठीक समय पर मंत्र का उच्चारण। पंडिताइन ने पहले से तैयारी नहीं की थी। वह हड़बड़ाकर उठी। ज्वार ले आई। समय निकल चुका था। ज्वार के दाने मोती नहीं बने।
पड़ोसिन जागरूक थी। पूरी तैयारी पहले से ही कर रखी थी। उसने ठीक समय पर ज्वार के दाने डाले। सारे मोती बन गए। वह पंडितजी के घर कटोरी भर मोती ले गई। पंडित जी ने देखा। पंडिताइन भी आंखें फाड़कर देखने लगी। उसने सोचा-मैं भी उस समय ज्वार के दाने डाल पाती तो मोती बन जाते। पर अब क्या हो? न मंगलवार, न मंत्र और न मोती।
- जानकर भी अनुभव नहीं होता, दर्शन नहीं होता तो समस्या का समाधान नहीं होता, ज्वार के दाने मोती नहीं बनते । दर्शन है समस्या के समाधान का मार्ग। दर्शन का अर्थ है-आस्था का दृढ़ीकरण, जानना और जानी हुई बात का अनुभव करना।
तीसरा मार्ग है आचरण, अनुभव का क्रियान्वयन करना। जब ये तीनों समन्वित होते हैं, तब मुक्ति दूर नहीं होती । मुक्ति का वास्तविक अर्थ है-अपने संस्कारों का मिट जाना, कषायों का समाप्त हो जाना, आश्रव का समाप्त हो जाना।
जैन दर्शन ने यह स्पष्ट किया है कि मरने के बाद मुक्ति होती है, यह भी एकांगी है। जिस व्यक्ति को वर्तमान जीवन में मुक्ति नहीं मिलती, समाधान नहीं मिलता, उसे मरने के बाद भी मुक्ति नहीं मिलेगी, समाधान नहीं मिलेगा। सबसे अधिक मूल्यवान है-वर्तमान का क्षण। इस आधार
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