________________
समस्या और मुक्ति / १२९
समस्याएं काम कर रही हैं- १. मिथ्या दृष्टिकोण, २. असंयम, ३. प्रमाद, ४. कषाय, ५. चंचलता। जैन दर्शन ने बताया कि मूल समस्याएं ये पांच हैं। यही वास्तव में दुःख है। यही दुःख का चक्र है। जब तक इस दुःख के चक्र को नहीं तोड़ा जाएगा, तब तक जो सामाजिक, मानसिक और आर्थिक समस्याएं हैं, उनका सही समाधान नहीं हो पाएगा।
एक प्रश्न है कि एक आदमी करोड़पति है, अरबपति है। वह अप्रामाणिक और अनैतिक व्यवहार करता है। क्या वह बुराई गरीबी के कारण करता है? अभाव के कारण करता है? रोटी-रोजी के लिए करता है? गरीब आदमी इतना अनैतिक नहीं होता, जितना अनैतिक एक धनी
और अमीर आदमी होता है। समस्या धन की नहीं है। समस्या लोभ की है। यह सबसे बड़ी समस्या है। इसका समाधान नहीं खोजा जाता। समाधान खोजा जाता है गरीबी का। वह कभी समाप्त नहीं होती। कुछ लोग बहुत धनी हो जाते हैं और कुछ अत्यधिक गरीब रह जाते हैं। जहां पहाड़ है वहां गढ़ा अवश्य होगा। ऊंचाई है तो निचाई भी होगी। सर्वत्र समतल हो नहीं सकता। क्या समानता हो सकती है? यह असंभव नहीं है। पर जब तक मूल समस्या पर ध्यान नहीं जाता, तब तक समस्या का समाधान नहीं मिल सकता।
इन समस्याओं का एक शब्द में समाधान है-संवर। इसको हम विस्तार से समझें। समस्या के जैसे पांच घटक हैं, वैसे ही समाधान के-संवर के भी पांच घटक हैं। पहला है सम्यक् दृष्टिकोण। जिस व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक् होगा, उसमें संवेग जागेगा, निर्वेद जागेगा, अनुकंपा का भाव जागेगा। सम्यक् दृष्टि का लक्षण है मन की शान्ति। संवेग होगा, वैराग्य होगा पदार्थ के प्रति । तृष्णा कम होने लगेगी। निर्वेद अर्थात अनासक्ति आएगी। अनुकंपा जागेगी। करुणा का प्रवाह फूट पड़ेगा। सत्यनिष्ठा प्रबल होगी।
_ दूसरा है तृष्णा की कमी। जब तृष्णा कम होगी, तब प्रमाद कम होगा। अप्रमाद या जागरूकता बढ़ेगी। यह तीसरा समाधान है।
जब अप्रमाद आता है, जागरूकता बढ़ती है, तब क्रोध, अहंकार,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org