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जीव-शरीर सम्बन्धवाद
गौतम ने भगवान महावीर से पूछा--भगवन् ! जीव पुद्गल है या
पुद्गली?
भगवान ने कहा-जीव पुद्गल भी है, पुद्गली भी है। गौतम-यह किस अपेक्षा से प्रतिपादित किया जा रहा है?
भगवान-जिसके पास छत्र होता है, उसे छत्री कहा जाता है। जिस के पास दंड होता है वह दंडी कहलाता है। इसी प्रकार जीव पांच इन्द्रियों की अपेक्षा से पुद्गली है और जीव की अपेक्षा से पुद्गल है।
प्राचीन साहित्य में पुद्गल शब्द अनेक अर्थों में व्यवहत हुआ है। पुद्गल का एक अर्थ होता है पिण्ड। पिण्डाकार पदार्थ के लिए पुद्गल शब्द का प्रयोग होता है। अनेक प्राचीन ग्रंथों में आत्मा के लिए अधिकांशतया पुद्गल शब्द प्रयुक्त हुआ है। बौद्ध साहित्य में प्रायः स्थलों पर पुद्गल आत्मा का द्योतक शब्द है। सूत्रकृतांग सूत्र में भी 'उत्तम पोग्गले' उत्तम पुद्गल का आत्मा के अर्थ में उल्लेख मिलता है। भगवती सूत्र में भी जीव का पर्यावाची नाम पुद्गल है। पुद्गल का एक अर्थ हैअचेतन द्रव्य। पुद्गल परमाणु का वाचक भी है। जहां परमाणु के प्रसंग में पुद्गल शब्द आता है, वहां पुद्गली शब्द जीव बन जाएगा।
जीव और पुद्गल में सम्बन्ध क्या है? चेतन और अचेतन में सम्बन्ध क्या है? जो अनुसंचरण करने वाला जीव है वह पुद्गल के साथ घुलामिला है। इसलिए चेतन और अचेतन सर्वथा स्वतन्त्र नहीं हैं।
जीव की पहचान का मुख्य साधन है-पांच इन्द्रियां। वह इन्द्रियों के सहारे जाना जाता है। इसके अस्तित्व को प्रमाणित करने वाला यह
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