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८४ आमंत्रण आरोग्य को
मानवीय सम्बन्धों का विकास
पवित्रता का तीसरा सूत्र है- मानवीय सम्बन्धों का विकास । आज ऐसा लगता है कि मानवीय सम्बन्धों में बहुत नीरसता - कटुता आ गई है । आज मिल मालिक और मजदूरों के सम्बन्ध कैसे हैं, यह सब जानते हैं । पारस्परिक संबंधों में जब समानता की अनुभूति नहीं होती है तभी यह स्थिति बनती है । अधिकारी और कर्मचारी, मालिक और नौकर- इन दोनों के बीच में खाई पड़ जाती है | हड़ताल, तालाबन्दी आदि उसी के परिणाम हैं । यदि मानवीय सम्बन्ध अच्छे हों तो ऐसी स्थिति ही पैदा न हो ।
क्रूरता कम हो
यह मजदूर और मिल मालिकों का ही सवाल नहीं है । आज शिक्षक, पानी देने वाले कर्मचारी, बिजली देने वाले कर्मचारी, यहां तक कि डॉक्टर भी हड़ताल कर देते हैं । इसका कारण यही है कि मानवीय सम्बन्धों की जो मिठास होनी चाहिए, समानता की जो अनुभूति होनी चाहिए, वह नहीं है । हम हड़ताल को अच्छा नहीं मानते पर उसके पीछे असमानता का जो कारण है, उसे भी इन्कार नहीं किया जा सकता ।
आज आदमी में इतनी क्रूरता पनप गई है कि वह हजारों मार्गों से फूटती रहती है । इसी से वह हाथियों, शेरों, मृगों, खरगोशों की हिंसा करने में भी संकोच नहीं करता । आदमी अधिक दूध निकालने के लिए गायों को इन्जेक्शन लगवाता है | बछड़ा तड़प-तड़पकर मर जाता है पर गाय का सारा दूध निकाल लेता है । क्रूरता के ऐसे-ऐसे रूप हैं कि उनकी व्याख्या भी कठिन है । ऐसी क्रूरता जहां होती है, वहां व्यापार की पवित्रता नहीं रह सकती ।
व्यक्ति स्वस्थ बने
जिस व्यक्ति ने जीवन का मूल्यांकन किया है वह केवल आजीविका नहीं कमाएगा, उसके साथ पवित्रता को भी जोड़ेगा । अणुव्रत आंदोलन से पवित्रता को उभारने का ही एक प्रयत्न है ।
स्वस्थ व्यक्ति ही स्वस्थ समाज का निर्माता होता है । व्यक्ति की स्वस्थता उसके आहार पर भी बहुत कुछ निर्भर करती है । यह देखा गया है— जिन
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