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स्वस्थ समाज रचना में हमारी सहभागिता ८३
के बिना ऐसा समाज कभी संभव नहीं है ।
नियन्त्रण की चेतना जागे
__ आवश्यकता यही है कि आदमी-आदमी में नियन्त्रण की चेतना जागे, वह पशु की तरह दूसरों से हांका न जाए । यदि दण्डनीति आदमी को हांकती रही तो प्रबुद्ध समाज का निर्माण नहीं हो सकेगा। जब भी समाज में प्रबुद्धता जागती है, मनुष्य-मनुष्य में दूरी मिट जाती है, मानवीय एकता की भावना प्रबल हो जाती है । स्वस्थ समाज में ही संवेदनशीलता, सहानुभूति तथा करुणा का विकास होता है ।
मनुष्य के लिए आजीविका आवश्यक है पर सवाल यह है कि वह आजीविका पवित्र है या अपवित्र । स्वस्थ समाज-संरचना के लिए यह आवश्यक है आजीविका अपवित्र अर्थात अप्रामाणिक न हो । जव भी आदमी अप्रामाणिक होता है तो उसके मन में बहने वाला करुणा का स्रोत सूख जाता है | वह थोड़े लोभ या लाभ के कारण ऐसी अप्रामाणिकता कर बैठता है, जो दूसरों के लिए खतरनाक भी हो सकती है । मिलावट का धन्धा एक इसी प्रकार की अप्रामाणिकता है।
अप्रामाणिकता का स्रोत
अप्रामाणिकता का दूसरा स्रोत है शोषण । अप्रामाणिक आदमी ही दूसरे के श्रम का शोषण करता है । बल्कि अपनी अप्रामाणिकता के कारण कभी कभी तो आदमी इस हद तक आगे बढ़ जाता है, जो सर्वनाश को छूने लगत है । नशीली दवाइयों का धन्धा एक ऐसा ही धन्धा है । जो लोग नशीली दवाइय बेचते हैं, पहले वे लोगों को निःशुल्क दवाइयां बांटते हैं । जब उनको दवाइये की आदत पड़ जाती है तब हर हालत में उन्हें खरीदना पड़ता है । ऐसे लोग की स्थिति यहां तक पहुंच जाती है कि अपने चरित्र को बेचकर भी उन्हें अपर्न आदत का शोषण करना पड़ता है, अंत में उनकी दर्दनाक मृत्यु तक हो जात है | सचमुच यह शोषण की चरम सीमा का उदाहरण है | शस्त्रों का व्यापा भी एक इसी प्रकार का व्यापार है । कुछ लोग इतना नहीं भी करते तो र्भ गरीबी की मजबूरी का फायदा उठाकर अपनी तिजोरियां भरने की कोशिश कर
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