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________________ अहिंसा का कालजयी आलेख ६७ इच्छा का इजहार करते हैं कि हम उत्तरजीवी यहूदियों के मानसिक व भौतिक घावों को सहलाना चाहते हैं । उनकी आर्थिक क्षति का उन्हें मुआवजा देकर, यथासंभव क्षतिपूर्ति करना चाहते हैं । उत्पीड़ित यहूदियों को पूर्वी जर्मनी में शरण देने के हम हिमायती हैं ।' नया प्रस्थान प्रस्ताव की भाषा प्रश्न उपस्थित करती है— क्या यह प्रस्ताव हृदय परिवर्तन से उपजा है अथवा ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) की प्रभावभूमि में उपजा है ? उत्तर कुछ भी हो । जो परिर्वतन परिलक्षित हो रहा है, वह हिंसा से अहिंसा की दिशा में एक नया प्रस्थान है । अतीत की आलोचना आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है । राजनीति के क्षेत्र में उसकी अनिवार्यता नहीं है । महाभारत का एक प्रसिद्ध सूत्र है न कश्चिद् कस्यचिद् मित्र, न कश्चिद् कस्यचिद् रिपुः । कारणादेव जायन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा || राजनीति में कोई किसी का मित्र नहीं होता और कोई किसी का शत्रु नहीं होता । कारणवश ही कोई किसी का मित्र बन जाता है और कोई किसी का शत्रु | नया सूर्योदय उस राजनीति के क्षितिज में अकारण मैत्री का सूर्य उगता है, क्या यह असंभव जैसी घटना नहीं है ? पूर्वी जर्मनी के सांसदों ने जो चरण आगे बढ़ाया है, वह उस जगत् के लिए भी अभिनंदनीय है, जो अहिंसा में आस्था रखता है और उसकी छत्र-छाया में विश्वशांति की स्थापना करने को उत्सुक है । सत्ता, धन और अधिकार के साथ क्रूरता का योग मिलता है, अघटित घटनाएं घट जाती है । इस शताब्दी में निरंकुश तानाशाहों को दुनिया ने देखा है, उसके अतिचारों को झेला है और उनके द्वारा प्रदत्त उत्पीड़नों को भोगा है । सत्ता हथियाने और उस पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया गया ? इस वातावरण में सत्ता के पद पर बैठे लोग ऐसी क्षमायाचना करें, इसे एक नया सूर्योदय न मानें तो क्या मानें ? क्रान्तिकारी कदम उत्पीड़न की कहानी बहुत पुरानी है । क्रूरता के बिना वह संभव नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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