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________________ ६८. आमत्रण आराग्य का क्रूर मनुष्य दूसरे मनुष्यों को कीट-पतंगा जैसा मानता है इसलिए उन्हें यातना देने में उसे कोई हिचक नहीं होती । अहिंसा के क्षेत्र में करुणा के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया और सबको अपने समान समझने की बात कही गई । लोकतंत्र अहिंसा का व्यावाहारिक या सामाजिक प्रयोग है । इस प्रणाली में शासक क्रूर हो सकता है पर वह निरंकुश तानाशाह नहीं बन सकता, साठ लाख यहूदियों की यातना शिविरों में बलि नहीं चढ़ा सकता । सोवियत रूस के राष्ट्रपति गोर्बाच्योव ने ग्लासनोस्त की नीति का विकास कर तानाशाही और क्रूरता की ओर जाने वाली अधिनायकवादी प्रणाली को मृत्यु की ओर ढकेला है । यह एक क्रान्तिकारी कदम है । विरल घटना समाज में नियन्त्रण जरूरी होता है, माना जाता है किन्तु इतना नियन्त्रण नहीं कि आदमी उसकी जकड़न में अपना अस्तित्व गंवा बैठे, वह नियंता के हाथ की कठपुतली मात्र बन जाए । लोकतंत्र पर यह आरोप है कि उसकी कार्य-प्रणाली में वह स्फूर्ति और तत्परता नहीं होती, जो अधिनायकवादी प्रणाली में होती है । कुछ अंशों में इसे सही भी कहा जा सकता है । लोकतंत्र के शासक मनचाहा अनिष्ट नहीं कह सकते तो इष्ट करने में भी प्रक्रियागत शिथिलता हो सकती है । एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति अन्याय न कर सके; यह अनिवार्यता शासनतंत्र के साथ जुड़ी रहे तभी समाज स्वस्थ रह सकता है | समय का चक्र घूमता रहता है, उसमें कछ अतिमहत्त्वाकांक्षी व्यक्ति अपनी शक्ति बढ़ाने में जुट जाते है । सेना पर अपनी पकड़ मजबूत बना तानाशाह बन बैठते हैं | इस शताब्दी के तानाशाहों ने मनुष्य जाति के साथ जो निर्मम व्यवहार किया है, वह अतीत को पीछे छोड़ चुका है । हिटलर का दर्प भी अपने ढंग का अनोखा था । उसका आतंकवादी पंजा जहां भी पड़ा, वह राष्ट्र अमानवीय कृत्य का शिकार हो उठा । केवल यहूदी ही नहीं, अन्य अनेक राष्ट्र इससे प्रताड़ित, उत्पीड़ित और आतंकित हुए हैं । पूर्वी जर्मनी की संसद ने उन सबके प्रति विनम्र संवेदना व्यक्त की है और क्षमायाचना का स्वर उदात्त किया है । यह इतिहास की एक विरल घटना है । क्या ऐसा कुछ सोचा जा सकता है, जिससे इक्कीसवीं शताब्दी में कोई तानाशाह पैदा न हो, इस काले इतिहास की पुनरावृत्ति न हो ? यह क्षमायाचना ऐसे वातावरण का निर्माण कर सके तो मनुष्य जाति का भविष्य अत्यन्त उज्ज्वल होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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