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________________ ४६ आमंत्रण आरोग्य को आर्थिक विकास की धुन में लगा हुआ आदमी क्या गबन और आर्थिक घोटालों से बच पाएगा ? विकास और संयम- दोनों सापेक्ष हैं । दोनों का संतुलन ही सामाजिक समस्याओं को समाधान दे सकता है । आर्थिक मामलों में एक अर्थशास्त्री का परामर्श और योजना जितनी उपयोगी हो सकती है उतना ही उपयोगी हो सकता है एक धार्मिक संत का परामर्श । उस धार्मिक संत का परामर्श, जो स्वयं अर्थ में लिप्त न हो । अपराध का कारण लोभ या कामना की अति ने सामाजिक अपराधों की एक श्रृंखला तैयार की है । आवश्यक श्रम, आवश्यक उत्पादन और अपेक्षित आपूर्ति- इससे अपराध की सृष्टि नहीं होती । आवश्यकता से अधिक अतिरिक्त संग्रह किसी व्यक्ति या किसी राष्ट्र के पास होता है तो वह अपराध का रास्ता साफ करता है इसलिए आर्थिक विकास के साथ आर्थिक संयम की अनिवार्यता है । आर्थिक संयम का सूत्र आज के आदमी की समझ से परे हैं | आर्थिक उपयोगिता के तर्क इतने प्रबल हैं कि उनके सामने उसका टिक पाना भी मुश्किल है । उसका न कोई अपना तर्क है और न कोई उसकी उपयोगिता है । वह एक सचाई है। सत्य इतना साफ होता है कि उसे समझने के लिए किसी तर्क की जरूरत ही नहीं होती । दर्पण में प्रतिबिम्ब होता है । उसके लिए कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सकता | यदि आर्थिक अपराधों से समाज को उबारना है तो आर्थिक संयम को समझना ही होगा । चाहे आज चाहे कल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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