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________________ संकल्प की स्वतंत्रता और नैतिकता ३१ राजनीति और धर्म का एकीकरण खतरनाक है राजनीति और धर्म एक नहीं है । उनका एकीकरण खतरनाक है । अपनेअपने स्थान पर दोनों का महत्त्व है । उन्हें मिला देने पर दोनों का मूल्य कम हो जाता है । इस प्रसंग में आचार्य भिक्षु ने एक कथा कही, वह अत्यन्त प्रासंगिक एक साहूकार की दुकान में सवेरे कोई पैसा लेकर आया और कहा, 'शाहजी! पैसे का गुड़ है ?' दुकानदार ने उस पैसे को नमस्कार कर उसे ले लिया । उसने सोचा-सवेरे-सवेरे तांबे के सिक्के से व्यवसाय का प्रारम्भ हुआ है । दूसरे दिन वह रुपया लेकर आया और कहा-शाहजी ! रुपये की रेजगी है ?' दुकानदार ने रुपये को नमस्कार कर उसे ले लिया । रेजगी गिनकर उसे दे दी । मन में प्रसन्न हुआ- 'आज चांदी के सिक्के का दर्शन हुआ ।' तीसरे दिन वह खोटा रुपया लेकर आया और बोला-'शाहजी ! रुपये की रेजगी है ?' दुकानदार प्रसन्न होकर बोला-'मेरी दुकान पर कल वाला ही ग्राहक आया है । उसने रुपया हाथ में लेकर देखा तो वह खोटा था । भीतर तांबा और ऊपर चांदी । उस रुपये को फेंककर बोला--'ले जाओ यह खोटा रुपया, रेजगी नहीं है ।' वह बोला, 'शाहजी ! आप नाराज क्यों हुए ? परसों मैं पैसा लाया था, तब तुमने तांबे के सिक्के को नमस्कार किया था, कल मैं रुपया लाया था, तब तुमने चांदी के सिक्के को नमस्कार किया था और इसमें तो तांबा और चांदी-दोनों हैं, इसलिए इसे तुम दो बार नमस्कार करो । ' शाह बोला-रे मूर्ख ! परसों तो अकेला तांबा था, वह ठीक है । कल अकेली चांदी थी, वह और अधिक ठीक है । वे दोनों अलग-अलग थे इसलिए नकली नहीं थे पर इसमें भीतर तांबा और ऊपर चांदी का झोल है इसलिए यह खोटा है । यह किसी काम का नहीं ।' राजनीति और धर्म की मिलावट का इस दृष्टान्त के संदर्भ में अंकन किया जाए तो सचाई स्पष्ट होगी और उनके स्वतंत्र रूप का सही मूल्यांकन होगा, उससे नैतिकता को अधिक बल मिलेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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